यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 11 मई 2024

उम्र ऐसी कि सब ही भाने लगे



उम्र ऐसी कि सब ही भाने लगे

घटा  बादल   क़रीब आने लगे

बहका बहका सा उलझता रहता

धूल - मिटटी सभी सुहाने लगे

 

बाग कोयल की बोल अच्छी लगे

खेत, नदिया की धार अच्छी लगे

जो  भी   देखूँ   वो   मोह  लेता है

देह सरसों, मटर  की अच्छी लगे

 

आज – कल  ठण्ड  मज़ा देती है

और   वृद्धों   को  सज़ा   देती है

प्यारी  लगती  हैं  ओस  की बूँदें

हँसते   मुखड़े  से  लजा  देती है

 

रुखा  सूखा  भी  ख़ुशी  देता है

करता   मनमानी  जैसे  नेता है

लोगों की सुन के अनसुना करता

मन को भाये जो कर ही लेता है

 

आज-कल क्रोध भागा फिरता है

आज कल सबको माफ़ करता है

प्यार   होंठों   से  लिपट   बैठा है

मीठा - मीठा  ही  शब्द झरता है

 

क्या  हुआ  है   पता  नहीं लगता

कुछ तो अच्छा हुआ यही लगता

कोई कुछ  साफ़ बताता भी नहीं

कोई इक बोला मजनूं सा लगता

 

पवन तिवारी

११/०५/२०२४   

 

     

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