यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

जग भर के लिए अर्थ था मैं

जग  भर  के  लिए अर्थ था मैं

तुम्हरे  दृग  में  कदर्थ   था  मैं

फिर  मेरा  अर्थ  निरर्थक  था

उर यूँ धड़का  ज्यों व्यर्थ था मैं

 

पहले  कितना   हर्षित  था  मैं

निज के ही  प्रति कर्षित था मैं

फिर तुम आयी निज को भूला

तुम पर  ही  आकर्षित  था  मैं

 

अब सोचूँ  क्या  भोला था मैं

या  रूप  में फँस डोला था मैं

या प्रेम में सुधबुध  भूल के मैं

अपने हिय को  खोला  था मैं

 

पट खुलते ही लुट गया था मैं

जैसे   बावरा  भया   था   मैं

तुमने जब  कस  ठोकर मारी

गिर गया खिलाड़ी नया था मैं

 

मेरा  क्या  मैं  तो बस था मैं

थोड़ा   वैसा  अल्हड़  था  मैं

तुम  होशियार  रहना  यारों

वैसे    पहले  मैं  भी  था  मैं

 

पवन तिवारी

२३/०५/२०२२

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