यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

लोग पूछते हैं मुझसे

लोग  पूछते  हैं   मुझसे   मेरी   भी  कहानी    

कैसी  चल  रही  है  ज़िंदगी   में  ज़िंदगानी

 

हो  चुके  जवान   जरा  ये  भी  तो  बताओ

इस  जवानी  को  जवानी  है  जरा  जताओ

कविता में लिखोगे कब तलक ये झील पानी

पहले ही कदम पे छल था फिसल गये जानी

लोग पूछते हैं मुझसे मेरी भी  कहानी

 

 

है बड़ा ख़िलाड़ी ये तो मिलते ही लगा मुझे

पहली  बार  में  जरूर   रूप  ने  ठगा  मुझे

पीड़ा  त्रास   की   मेरे  अंदर  में  है रवानी

प्रेम  दे  सके   मिला   ऐसा   कोई  दानी

मोहिनी  सी  भाषा  भी थी सुना दूँ जुबानी

अब तो कट रही  है  मात्र बातें बस तूफानी

लोग पूछते हैं मुझसे मेरी भी  कहानी

 

 

शुरू  -   शुरू   में  जरुर   थोड़ी   छूट   देती

रूप   के  जमाल  में   फँसा   के   लूट   लेती

प्रेम  की  कहानियों  में  दुःख  से  भरी बानी

रूप वाली जितनी भी हैं सब की सब सयानी

फिर भी उनपे ही फ़िदा कि जैसे हों वो रानी

लागे   शुरू  शुरू में  चीज  आसमानी 

लोग पूछते हैं मुझसे मेरी भी  कहानी

 

बचना रूप से शुरू में सभी बड़ों ने कहा

असली रूप, रूप का, शब्द में है आ रहा

अब तो मेरी कविता में चुनर नहीं धानी

कविता  से  दूर  इन्हें   रखना   है  ठानी

ये कहानी  ही  मुझे कविता में है सुनानी

बच  के  रहो  प्रेम  जाल से कथा बतानी

लोग पूछते हैं मुझसे मेरी भी  कहानी

 

शब्द  मेरे  साथी  भी   दुविधा में पड़के

थक गये थे रोज प्रेम जाल से जी लड़के

दर्द  दिल  के अंदर है क्या दवा करानी

समझ नहीं  पाता  हूँ  कैसे  है दिखानी

प्रेम  पर  लिखूँ   कैसे   करते  हैं  रानी

प्रेम की कहानी नहीं  फिर है आजमानी

लोग पूछते हैं मुझसे मेरी भी कहानी

 

पवन तिवारी

१३/०५/२०२२  

 


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