यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

जाने कितने ही दिन दर्द सहे


जाने    कितने    ही    दिन   दर्द    सहे

प्यार  वाले   भी   बिन   प्यार  के  रहे

प्यार वाला मामला तो निजता का है

चाह  के  भी  कौन  बोलो किससे कहे

 

सावन  सोचो  यदि  सूखा  पड़  जाय

जीना चाहे तो भी कोई जिया नहीं जाय

ऐसे    वसंत    का     कौन    मनुहार

फूल  ना खिले  जिसमें  आम बौराय

 

स्वार्थ  सारे  रिश्तों  को  खाता हाय

बछड़े को  देख  के  ना गाय रम्भाय

मन ही खराब हो तो कुछ ना सुहाय

जिह्वा को कड़वी जी लागे मीठी चाय

 

प्यार  में  भी  घन  की है  घुसपैठ जी

प्यार  में   धनिक   दिखावे  ऐंठ  जी

छोड़ के  मनुजता  को आगे खड़ा धन

देख  के  हालात  मन  जाता बैठ जी

 

 

पवन तिवारी

३/०३/२०२२  

 

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