यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 30 जून 2022

तुमसे मिल सकता था बहाने से

तुमसे मिल सकता था बहाने से

उलझा सकता भी था फसाने से

किन्त्तु मेरा  स्वभाव   झूठ नहीं

कैसे   आता   बिना  बुलाने   से

 

दिल ने जब माना तुमसे प्यार मुझे

तय  किया  करना  है इजहार मुझे

तुम्हरे  दिल  में है क्या नहीं सोचा

हो  गया   तुमसे   कहा  यार  मुझे  

 

पहले   तुमने  मुझे   डराया   था

एक  क्षण  को  लगा  पराया  था

अगले क्षण तुम्हरे  अधर मुस्काये

जैसे  मधुमास  हँस  के आया था

 

तुमने  हँसकर  गले  लगाया था

खुशियाँ सारे जहाँ की पाया था

सबकी किस्मत में ये होता नहीं

पुण्य  था  ऐसा प्यार पाया था

 

कोई उपहार  ही  न लाया था

नैनों में प्यार भर के लाया था

मानो तो मान  इसे भी सकते

बाहों का हार ले के  आया था

 

याद आते  हैं  दिन  सुहाने थे

कितने  मासूम  थे  सयाने थे

अब भी मासूमियत जी वैसी

आजमाते  हैं  तब  दीवाने थे   

 

पवन तिवारी

२३/१२/२०२१

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