यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 6 जून 2022

अबकी पीड़ित मैं नहीं हूँ

अबकी पीड़ित मैं  नहीं  हूँ  समय है

अबकी हर्षित तात  पीड़ित तनय है

समय ही  उलझा  समय के खेल में

भाग्य खुद ही बंद  अपनी  जेल में

 

प्रकृति अपनी माया में ही भ्रमित है

अपने ही शस्त्रों से विघटित दमित है

कल के   शासक   आज  बेचारे  हुए

जो  विजेता  थे  हैं  अब  हारे  हुए

 

काल को महाकाल शिव सा मिल गया

पुष्प से कुछ अधिक कंटक खिल गया

सूर्य  को  भी  दे  दिया  अवकाश  है

इक  उजाला  आज  सबके  पास  है

 

इसलिए अब सहज ही व्यवहार हो

सब  बराबर  हैं  ये  कारोबार  हो

जिन्दगी केवल तभी तक ज़िन्दगी

जब तलक इक दूजे के प्रति बंदगी

 

पवन तिवारी

०४/०८/ २०२१

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