यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 20 जून 2022

अपने ही लूटते जा रहे

अपने  ही   लूटते   जा  रहे

रोज   ही   टूटते   जा   रहे

अपनी ही ताक में अपने सब

रिश्ते  भी   छूटते  जा   रहे

 

उसके दुःख  से  ख़ुशी  हो रहे

स्वप्न  वैभव  में  ही  खो  रहे

उसका सुख देख विचलित हुए

रात   जागें   सुबह   सो  रहे

 

ऐसे   वक़्त  में  भी  जी  रहे

ज़ख्मो को कपड़ों सा सी रहे

होठ  हँसते   ह्रदय   रो रहा

घूँट   में   ज़िन्दगी   पी  रहे

 

ज़िन्दगी   भर   जहर  में रहे

कहने  को  हम शहर  में  रहे

उनको स्थिरता का क्या पता

उम्र  भर  जो  लहर  में  रहे

 

पवन तिवारी

२६/०८/२०२१    

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