यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 13 मई 2022

दुःख के कितने चरण आते

दुःख  के   कितने   चरण आते

सुख का इक पग भी ना आता

हर्ष  क्षण  भर  को  जो आये

मन  ये   फूले  ना    समाता

 

सुख  अकालों  में है शामिल

दुःख  तो  मिट्टी खोद आता

सुख  तो  सकुचाये  पड़ा है

दुःख हैं ऊँचे  स्वर में गाता

 

हर  तरफ   संदिग्धता  है

कौन किसका  साथ पाता

स्वार्थ से सब  ही  बँधे हैं

हाथ पकड़े  जो न  भाता

 

जहर  ही  पसरा हुआ है

सुधा को घर कौन लाता

देखते    सब   अप्सरायें

किसी को ना दिखती माता

 

मानवीपन   मर   रहा   है

कोई अब इस पथ न जाता

किन्तु  आशा ही है  जीवन

छोड़ो  चिंता  कौन  छाता

 

पवन तिवारी

१८/०५/२०२१ 

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