यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 23 मई 2022

अपने संघर्ष पथ को

अपने    संघर्ष   पथ को    नहीं  छोड़ेंगे

आपसी     ताल - मेल     नहीं   तोड़ेगे

कैसे   प्रतिकूल   मौसम    रहें   सामने

बिखरी कड़ियों को  जी-जान से जोड़ेंगे

 

गलतियों  पर  मगर   प्रेम  से  डाँटोगे

काँटों  को  भी  बड़े   धीरे से  छाँटोगे

थमना बिलकुल नहीं गति भले धीमी हो

निज के हित के लिए तुम नहीं बाँटोगे

 

ऐसे  पथ  से  ही  मानक   गढ़ोगे  नये

ये अलग  बात  दुःख  कुछ  सहोगे नये

किन्तु  प्रतिहास  में सुख मिलेगा तुम्हें

तुम   पुरातन  भी  होकर  रहोगे  नये

 

तुमसे  आशा  यही  तुमपे   विश्वास  है

शब्द साधक से ही  अब  बची  आस है

दर्द  ढल  जाता  है  प्रेम   मिलता  रहे

प्रेम  है,  लागे  सब  कुछ  मेरे  पास है

 

पवन तिवारी

०६/०६/२०२१

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