यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 30 मई 2022

सोचते - सोचते दिन

सोचते  -  सोचते   दिन   गुजरते   गये

उम्र   के   साथ   अरमान   बढ़ते   गये

दिन-ब-दिन तेजी  से  उम्र  ढलने लगी

हौंसले  थे  जवाँ  हम  सो   चढ़ते  गये

 

रोज दुःख  आते  थे  हमको  हड़काते थे

रोग  भी  लक्ष्य  से  हमको  भटकाते थे

फिर भी हँस देते थे हम भी फीका सही

इस तरह अपने  सपनों को भड़काते थे

 

लेके  आशीष  फिर  जोश से चलते थे

जो  बुरे काल  थे  हाथ  ही  मलते थे

मरने से पहले कुछ रचने का हठ लिए

वैरी जलते थे  हम  दीप सा जलते थे

 

कितनी हारों को ले करके हिय जीता है

घाव  काया  पे  है  किन्तु  उर गीता है

जो भी इस मंत्र को  सिद्ध कर ले गया

अंत  जीवन  का  अमृत  वही पीता है   

 

पवन तिवारी

०८/०७/२०२१

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