यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 10 मई 2022

उलझे – उलझे केश सा हूँ

उलझे – उलझे  केश सा हूँ

द्रवित भी हूँ अवशेष सा हूँ

काल को यदि मैं व्यक्त करूँ तो

अंगूठे   की   ठेस   सा   हूँ

 

कंठ  रुधित  महेश  सा हूँ

त्रास  के  परिवेश  सा हूँ

यह   दुर्दशा   देखकर  मैं

जैसे   बँटते   देश  सा  हूँ

 

अँधेरे   सन्देश    सा  हूँ

भाषायी मैं भदेस सा हूँ

और महत्त्व की बात करूं तो

नेता  के  उपदेश  सा  हूँ

 

थोड़ा  भारत  देश  सा हूँ

थोड़ा मैं भी विशेष सा हूँ

थोड़े क्षण ये भाव है रहता

फिर लगता कि शेष सा हूँ

 

मैं  जुए   की   रेस  सा  हूँ

और   उपनिवेश   सा   हूँ

सच में  कब स्वाधीन होंगे

क्रांतिकारी  के  भेष सा हूँ

 

पवन तिवारी

०५/०५/२०२१   

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