यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 2 मई 2022

दर्द बदन में नहीं

दर्द   बदन   में   नहीं   पर   पीर  बहुत है

वो दूर  होके  भी  लगे  नजदीक  बहुत  है

जाने ही कितनी बार उसने धोखा दिया है

फिर भी उसी पे मरता ये मजबूर बहुत है

 

वो  सच्चा  प्यार  करती  है  ये  झूठ  बहुत है

बाहर  सहज  दिखती   है  मगरूर  बहुत है

वो हँस के बात करती है सब ही फ़िदा होते

कितनों  को   लगे   मेरी   पर  दूर  बहुत  है

 

बहुतों से कहती रहती है कि प्यार बहुत है

कई  बात  फ़साने  में  फँसती  भी बहुत है

जिसकी थी विधि विधान से उसको भी छल गयी

बनती है वो सीता मगर बदमाश बहुत है

 

बाहर से दिखता ज़िन्दगी में प्यार बहुत है

सच  पूछिए  तो  अंदर  तकरार  बहुत  है

कितना रुलाया प्यार को  उसने न पूछिए

इस ज़िंदगी  में  दुःख  का  संसार बहुत है


पवन तिवारी  

२३/०४/२०२१

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