यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

विडम्बना कैसी-कैसी

विडम्बना कैसी-कैसी है दुख का ना कोई छोर है

राष्ट्र बना है जिनके कारण उनका ना कोई और है

धरा को उलट-पुलट करके के जो भरते उदर सभी का

उनकी ही अब बात अनसुनी दुखता पोर ही पोर है

 

नारों में,खेतों में, किनारों, में चर्चा उनकी

उनकी कोई किन्तु कभी सरकार नहीं सुनती

असली देश गाँव में बसता सबको यही बताते हैं

किन्तु किसानों की मानव में होती नहीं कभी गिनती

 

किसानों की मेहनत में हिस्सा देश भर का है

दावा अनाज पर उसके जैसे अपने घर का है

मेहनत किसान की कमाई किसी और की

उसकी ही मलाई में उसका हिस्सा तर का है

 

इनकी मौत ख़ास नहीं, खबर नहीं बनती है

नेता अभिनेता की प्रेस में बड़ी छनती है

इनकी भी मौज मस्ती प्रथम पृष्ठ पर छपती

टीवी वाली दुनिया तो और ही कुछ गुनती है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१८/०८/२०२०  

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें