यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 21 जून 2021

प्यार में होके भी ना बह सके

प्यार में होके भी ना बह सके

ये कह सके ना वो कह सके

बहुत ही खटकती थी ये दूरियाँ

न ये रह सके न ही वो रह सके

 

बहुत कुछ था कहना बहुत कुछ था सुनना

ऐसे में भी तय हुआ चुप रहना

गज़ब धीर इनका व शैली अनोखी

कि चेहरे की भाषा में आँखों से कहना

 

जब देखो तब आगे-पीछे ही चलना

देखें तो बस दूर से हाथ मलना

मिलने से कोई मनाही नहीं थी

मगर दोनों ने ठाना था फ़कत यूं ही जलना

 

फिर कहा एक दिन दोनों ने हमें कुछ है कहना

हमें एक दूजे के है साथ रहना

फिर राम मंदिर में शादी रचाई

कुछ यूँ सजा इनके जीवन का गहना

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८  

 

१/०८/२०२०  

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