यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

तुमको जब से देखा


तुमको जब  से  देखा  आते कैसे  कैसे भाव
उन भावों का मूल है लगता शायद प्रेम प्रभाव
सुनता हूँ कि  प्रेम  के  झटके  दोहरे होते हैं
इसीलिए थोड़ा विचलित हूँ लग ना जाये घाव

सौन्दर्य  दिखते  ही जाने क्यों आता है खिंचाव
उम्र का दोष कहूँ या समझूँ मेरा निजी स्वभाव
पहले ऐसा भाव नहीं था ऐसा कोई चाव नहीं था
गुण अवगुण इसे क्या मानू या मानू प्रेम प्रभाव

पिछले साल से ही जीवन में बढ़ गये नये रिसाव
तेजी से महसूस  हो  रहा  अनजाना सा  अभाव
मेरे  मित्र  भी  इसी  भाव  का  रोना  रोते  हैं
तेजी  से  बढ़  रहा  दिनों दिन ही इसका दुहराव

सब  विषयों  पर सोच सोच के अब आया ठहराव
सब बोलें अब एक ही सुर में उम्र का ही दुष्प्रभाव
दुष्प्रभाव  कैसे  कह  दूँ  जब  अच्छा  लगता है
प्रेम  का  लक्षण  लगता है अब होगा नहीं बराव

इस खाली हिय का विकल्प मैं प्रेम से करूँ भराव
चाह के  भी  मुझसे  सच  बोलूँ होता नहीं दुराव
बात समझ में आ ही गयी है मुझको हुआ है प्यार
पार  उतरना  है  तो  लेनी  होगी  तुम्हरी  नाव



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   

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