यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

शब्द कुछ को रुलाते हैं.


शब्द कुछ को रुलाते हैं.
शब्द कुछ को गुदगुदाते हैं.
कुछ को मौन करा देते हैं.
कुछ को बोलने पर मजबूर कर देते हैं.
कुछ को गुस्सा दिलाते हैं.
कुछ को भागने पर मजबूर कर देते हैं .
कुछ को पास बुलाते हैं.
कुछ ऐसे भी हैं जिन पर,
शब्दों का कोई असर नहीं होता.
मैंने कईयों से उनके बारे में पूछा,
सब मौन साधे आगे बढ़ जाते.
एक दिन खीझ कर एक पागल
से पूछ लिया, वह जोर से हँसा;
और बोला- संसद जाओ !
तब से मैं मौन हूँ !


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक- पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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