यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 4 जून 2019

हिन्दी आये


उसे  समझना  है प्रसाद  सूर तुलसी को
कोई बताओ  उसे  सीखकर  हिन्दी आये
वो निराला, वो तो  गाँधी तक से भी लड़े
उनसे बतियाओगे, कैसे बिना हिन्दी आये

उसे  मीरा  को  महादेवी को समझना है
अरे समझाओं  उसे भाषा तो हिन्दी आये
मिलोगे  कैसे  भला प्रेमचन्द, दिनकर से
वो तो हिन्दी हैं मिलोगे बिना हिन्दी आये

जो भी भाषाएं हैं प्यारी हैं बहुत अच्छी हैं
पर  मेरी माता है हिन्दी तो हिन्दी आये
वो बड़ा  ज्ञानी है विज्ञानी है सब ठीक है
मेरी  भी अभिलाषा पर उसे  हिन्दी आये

ये मधुर  सत्य  है  भारत की बिंदी है हिन्दी
जो हिय का साफ़ है हिय में लिये हिन्दी आये
वो सुने ध्यान से समझना है जिसे भारत को
आये जो भारत  तो वो  सीखकर हिन्दी आये  

मेरी  प्रशंसक  है  अनुराग  उसे है मुझसे
मेरा  अनुराग  है  हिन्दी उसे हिन्दी आये
पवन के गीत जिसे प्रिय जिसे भी सुनना है
अपने  हिय  में बसा करके वो हिन्दी आये


पवन तिवारी
संवाद : ७७१८०८०९७८
अणु डाक : poetpawan50@gmail.com

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