यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 10 मई 2019

मेरी खुशियों के छल्ले में


मेरी खुशियों के छल्ले में सदा से तू जरूरी था
मगर ये सच नहीं की तू कभी मेरी मजबूरी था
साक्षी की जरुरत कब रही है हिय के रिश्तों को
न होगा जल के भी काला प्रेम अपना कर्पूरी थी

तुझे था या न था मुझको मगर विश्वास था तुझ पर
नहीं परवाह थी क्योंकि मुझे विश्वास था मुझ पर
मात्र औरों के बल पर कोई भी ना युद्ध जीता है
किसी भी जीत की संभावना तो अपने ही भुज पर

ये ऐसा रोग है विश्वास इसकी एक औषधि है
कि इस सम्बन्ध की गहराई नापोगे तो जलधि है
रहा अविश्वास इस जग में ही सबसे क्रूर बैरी है
समन्वय का मिले जोरन तो एकदम ताजी सी दधि है

तुझे खोना तुझे पाना नहीं अभिलाषा थी मेरी
रहे तू हर्ष में प्रतिक्षण कि इतनी आशा थी मेरी
अपेक्षा से कभी भी प्रेम सच्चा निभ नहीं पाता
मैं बिखरा व्याकरण था हिन्दी का तू भाषा थी मेरी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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