यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 17 मार्च 2019

शब्दों के बिन अब होगा संवाद प्रिये


शब्दों के बिन अब होगा संवाद प्रिये
प्रेम समर्पण होता नहीं विवाद प्रिये
शब्द अखरते हैं अक्सर उदात्त प्रेम में
मौन श्रेष्ठ है बस कर लो अनुवाद प्रिये


करुणा की भी अपनी भाषा होती है
प्रेम की इक मर्यादित भाषा होती है
शब्दों की वैशाखी अब तुम मत लेना
आखों की भी मोहक भाषा होती है


प्रेम समझने चले भी जितने परे हुए
जिनको ना विश्वास प्रेम से डरे हुए
केवल ये विश्वास का रिश्ता है प्यारे
टिके वही जो डोर हैं इसकी धरे हुए   


अन्तस् से अन्तस् का रिश्ता होता है
बाहर वाला रिश्ता अक्सर खोता है
प्रेम कभी भी जिस्मों का संबंध नहीं
प्रेम  रूह  से रूह का नाता होता है



पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com

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