बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

तुम आओ तो साथ बने


तुम आओ तो साथ बने
तुम आओ तो बात बने
दिन तो कैसे गुज़र है जाता
तुम आओ तो रात बने

बिगड़ा सारा काम बने
थोड़ा ही सही नाम बने
साहस आ जाता है तुम संग
जीवन पथ तमाम बने

प्रेम संजीवनी प्रेम है अमृत
पंचामृत  में  तो है ये घृत
प्रेम सिखाये  जीने का ढंग
प्रेम बिना नाम का जीवित

इसीलिये मैं तुम संग आऊँ
चाहूँ  प्रेम   तुम्हारा  पाऊँ
मिल जाए जो प्रेम तुम्हारा
तो  मैं धन्य–धन्य हो जाऊँ

ये  अभिलाषा  पूरी   कर  दो
या  स्वप्नों  से  दूरी  कर दो
या फिर प्रणय दान दे दो मुझे
या मुझको तुम मृत्यु का वर दो

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

जो मौक़ा हाथ आये तो


जो मौक़ा हाथ  आये तो  निकम्मे बैठे हँसते हैं
निकल जाए जो मौक़ा आह करके हाथ मलते हैं

कभी  जब  वक्त  आता  जिंदगी  में  इम्तहानों का
जिन्हें तुम दोस्त कहते हो फ़क़त परिचित निकलते हैं


कि जिनकी  दोस्ती  पर  नाज़ होता है हमें अक्सर
नाज़ का वक्त आने पर वे मिलकर भी न मिलते हैं


बुरा  जो  वक्त  आया  तो मैं आया दोस्तों के पास
रहे  सब  चुप  कहा मैंने कि अच्छा दोस्त चलते है

है पलते सांप अस्तीनों में खालिस सच नहीं अब ये
बहुत  से दोस्त भी हैं अब जो अस्तीनों में पलते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

प्रेम के सूर्य से















प्रेम  के सूर्य से उर को जगमग  करें
शब्द विश्वास से जीवन चकमक  करें
स्नेह  के  आचरण  की  आभा लिए
प्रेम  का  मार्ग पावन पग - पग करें

प्रेम के धैर्य को आओ  धारण करें
प्रेम के मूल को आओ  कारण करें
प्रेम  का  एक  उद्दात  शास्त्र रचे
सहज  को प्रेम से  असाधारण करें

आओ तुम, आऊं मैं, मिल के हम करें
सारे  संताप  जीवन  के   हल  करें
आये  जीवन  में  उल्लास के छंद यूँ
गीत  गाते  हुए  संग  सफ़र हम करें


पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

रविवार, 28 अक्टूबर 2018

मेरे लिए लिखना









मेरे लिए लिखना

मेरे ज़िंदा होने का सबूत है
मैं ज़िंदा रहना चाहता हूँ,
मेरे लिए लिखना एक नशा है
एक जिम्मेदारी भी है
जिन दिनों मैं
नहीं लिख रहा होता हूँ
तब मैं मर रहा होता हूँ
थोड़ा - थोड़ा घुट-घुट कर
मैं गूँगा नहीं हूँ
मैं बोल सकता हूँ
वो भी अंदर से
इसलिए भी लिखता हूँ.

देश, काल और परिस्थितियों
के साथ होना चाहता हूँ
सम्पूर्णता में व्यक्त
धूल के संघर्ष से लेकर
फूल के सौन्दर्य तक 
पसीने की गाथा के साथ
अधरों पर अनायास 
उभर आती मुस्कान को
भी बनाना चाहता हूँ 
जिन्दगी का सच्चा दस्तावेज़ 
इसलिए भी लिखता हूँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com





शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

तब लिखता हूँ...


























































तब लिखता हूँ...

मैं क्यों लिखता हूँ
तुम रोज पूछते हो
सो सोचा आज तुम्हें
बता ही दूँ.
हाँ, बुरा मत मानना
पर मान भी गये
तो भी बेपरवाह आज
बताना जरूरी है
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर
जो भी जानना चाहते हैं
मैं क्यों लिखता हूँ ?
आओ पास बैठो, आराम से
अब सुनो, मैं क्यों लिखता हूँ...
जब बर्दाश्त से बाहर हो जाता है
बेचैन होकर सर पकड़ने की
नौबत आ जाती है
अकेले में लगता हूँ भुनभुनाने
कोई नहीं मिलता ऐसा
जिससे कह सकूँ
अपनी बेचैनी,भुनभुनाहट
“तब लिखता हूँ”
पता है...
जब खेतों में धान काटती,
बच्चियों को देखता हूँ,
जब बाज़ार में समोसे
बेचते बच्चे को देखता हूँ
जब मेले में खिलौने
बेचते बच्चे को देखता हूँ
और जब पाठशाला में उनका
रिक्त स्थान नहीं देखता हूँ

 “तब लिखता हूँ”

जब दिन भर जी तोड़ श्रम के बाद भी
एक श्रमिक को मजदूरी के बदले
मिलती हैं निःशुल्क भद्दी गालियाँ
वह समझ नहीं पाता कि
क्यों मिली उसे गालियाँ
तड़प उठता है उसका रोम-रोम

“तब लिखता हूँ”

जब कभी व्यवस्था के नाम पर
देखता हूँ लूट और
अंदर से मन हिंसक होने लगता है
कि मनुष्य की दुश्मन होती
इस व्यवस्था की कर दूँ हत्या
इससे पहले कि अंदर की हिंसा
आ जाए बाहर

“तब लिखता हूँ”

जब चारो ओर चाटुकारिता
मिथ्या की अनर्गल प्रशंसा
विद्वानों और साहित्य की उपेक्षा पर
ठहाके सुनता हूँ और
मेरे कान के पर्दे होने लगते हैं शून्य
“तब लिखता हूँ”
झूठ को सत्य के सामने
जब अट्टहास करते देखता हूँ
और सत्य के निस्पृह मौन को
लगता है मानो
फटने वाली है मेरी छाती
रुकने वाला है साँस का आवागमन
भाषा अधरों पर आकर
बड़बड़ाने लगती है बदहवास

“तब लिखता हूँ”

और हाँ, जब अपनों की भीड़ के मध्य
सत्य स्वयं को अपरिचित पाने लगता है
उपेक्षा से होने लगता है निराश
होने लगता है
उपहास का पात्र होने के करीब
और देखता है मेरी तरफ

“तब लिखता हूँ”


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com




सबसे आसाँ प्रेम है करना


सबसे आसाँ प्रेम है करना , उससे  मुश्किल  उसको पाना है
ये पाना उससे मुश्किल नहीं है,सबसे मुश्किल प्रेम निभाना है
ये महत्व की बात ही नहीं है , हमने किसको कितना चाहा है
सबसे अच्छी बात है ये अपनी कि कोई है जो हमको चाहा है

जग भर में वो एक है केवल जो , जिसने केवल मुझमें  गुण देखे
और बहुत से हैं  जग में सुंदर , पर  उसने  केवल  मुझमें  दिखे
ऐसे प्यार को प्यार करें जग भर,जग की खुशियों से उसको भर दें
प्रेरित  हो सच्चे प्रेमी जग के , पोर - पोर उसे प्रेम के रंग रँग दें 

प्रेम ही है जो जीवन को सचमुच,सुखमय - सुखमय सा कर देता है
जीवन में  मुश्किल  जो कुछ  भी है प्रेम वो सब  हल कर देता है
प्रेम के प्यासे जीव - जन्तु सब हैं, सबको  प्रेम से किसन नचाते हैं
सच्चे प्रेम से गरल  भी हार गया,  मीरा  को  खुद  प्रभु  बचाते हैं

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

गर्मी में चन्दन हो जाऊँ













गर्मी  में  चन्दन  हो जाऊँ
प्रेम तुम्हारा  जो  मैं  पाऊँ
आती हो सोच में जब  तुम
खिलकर  मैं पंकज हो जाऊँ

प्रेम में  कितनी  शक्ति है
प्रेम में  कितनी  भक्ति है
रोगशोक  का नाश करे वो
प्रेम वो मन्त्र  वो सूक्ति है

मुरझाये वो मुख को खिला दे
हँसते - हँसते गरल  पिला दे
जनम - जनम के हों बैरी जो
ऐसों  को  भी  प्रेम मिला दे

तुमसे  प्रेम  हुआ है जब से
ये सब  जाना  माना तब से
सच्चे  पथ पर अब आया हूँ
जाने  भटक रहा था कब से

अब निज में खोया रहता हूँ
सोये में  जगता  रहता  हूँ
दिवस रैन सब  एक लगे हैं
प्रतिक्षण प्रेम लोक रहता हूँ

प्रेम ने  मुझको पावन कर दिया
वर्षा में  मुझे  सावन कर दिया
ऋतु  वसंत  सा  लगे है जीवन
अवध सा उर मनभावन कर दिया

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com