यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 24 सितंबर 2018

रहूँ मैं दूर अक्सर टोकता है



रहूँ   मैं  दूर  अक्सर  टोकता  है
कि खुद ही पास जाकर  भोगता है

जुबाँ  से  तो  दुआ  वो दे रहा है
मगर दिल से फ़कत वो कोसता है

जुबाँ से कह दिया उसका  भला हो
मगर क्या दिल भी ऐसा सोचता है

कहा है यार उसको जब से अपना
जहर ख़ुद उसके दिल में घोलता है

उसे  सिखलाया मैंने बोलना क्या
कहूँ  कुछ तो मुझे  ही बोलता है

हुई  थी  दोस्ती सच की वज़ह से
कहे अब सच “पवन” तो रोकता है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com   

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