मंगलवार, 31 जुलाई 2018

मित्र, मित्र से भी जलता है



राग द्वेष का भी क्या कहना
दोनों भी जीवन का गहना
मित्र, मित्र से भी जलता है
मुझसे बेहतर उसका रहना

ज़्यादा बातें अपनी कहना
कम में भी कम उसकी सुनना
मित्र से श्रेष्ठ दिखाना खुद को
गढ़ – गढ़ झूठ को सच करना

मित्र चाहता खुश रहूँ मैं
उससे ज्यादा पर न रहूँ मैं
ऐसा किन्तु, परन्तु जो होए
फिर न ह्रदय से मित्र रहूँ मैं

सबसे बुरा मित्र का ताना
लगे हिया में बंद हो जाना
दोनों तने-तने जो रह गये
टूटे उर का ताना – बाना  

एक दूजे को धैर्य से सुनना
थोड़ा कहना ज्यादा सुनना
गुनना कुछ कहने से पहले
तो जीवन भर साथ में हँसना


पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com



रविवार, 29 जुलाई 2018

जग की प्रिय बतकही


















जग की प्रिय बतकही है निंदा
बहुतों  का  रस रत्न है निंदा
पर जो लक्ष्य को लेकर दृढ़ हैं
उनके   आगे   बेबस   निंदा

जो सच को लेकर है जिन्दा
जो सपनों  को लेकर जिंदा
अवरोधक  जितने  हैं इनके
होंगे   सब  शर्मिंदा  जिंदा

पहले  तो  सब  रोकेंगे
बात - बात  पर टोकेंगे
फिर भी ना माने जो बढ़ गये
कहके  सनकी  झोकेंगे

दुनिया  पर  तुम कान न दो
नहीं व न  पर ध्यान  न दो
कुछ भी कहें सम्बंधी,परिचित
पर  उनको  अपमान  न दो

बढ़ने लगोगे जब तुम आगे
कानाफूसी   पीछे  –  आगे
फिसल के उनकी जुंबा कहेगी
जाएगा  ये पता  था  आगे

ऐसे में  खुशियाँ  पाओगे
चाहोगे  जो  वो  पाओगे
जो दुश्मन थे मीत बनेंगे
गीत खुशी के गा पाओगे       

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

रविवार, 22 जुलाई 2018

जब भीषण अवरोधों से



जब भीषण अवरोधों से कोई आम आदमी उबरेगा
तोड़ सभी दुःख के बंधन जब आम आदमी गरजेगा
प्रेरणा के नव नायक का जब अभिनंदन करना होगा
जन-मन के वाणी से सहज तब उदधृत गीत मेरा होगा


सारी आशाओं के पर्वत जब भी जलधि में डूबेंगे
जीने को लालायित मन ही जब जीवन से उबेंगे
अंधकार प्रति दिशा रहेगा ऊषा मार्ग भ्रमित होगा
आशा से तब भरे अधर पर केवल गीत मेरा होगा


जब भी प्रेम विखंडित होगा नयन नीर टपकेंगे
उर के स्पंदित पीड़ा से रोम - रोम बरसेंगे
ऐसे में प्रेमी मन के जब साथ नहीं कोई होगा
उसके उर की औषधि का तब केवल गीत मेरा होगा


सुख के रंग सभी ने भोगे मैंने बस पीड़ा भोगी
बहुत लताड़ा है जीवन ने, यूँ ही नहीं बना जोगी
मुझको भी तो पता नहीं था शब्द मेरा साथी होगा
आँसू - आँसू शब्द बनेंगे, जीवन गीत मेरा होगा


जब भी निजी स्वार्थ की खातिर अपने राष्ट्र से छल होगा
जयचंदों की मिली भगत से बैरी का मनबढ़ होगा
जब-जब भारत माँ के सिंहों को जागृत करना होगा
शत्रु के वक्षस्थल पे तिरंगा वाला गीत मेरा होगा


पवन तिवारी
संवाद -  ७७१८०८०९७८
Poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 21 जुलाई 2018

प्यार की लहर आये बता दीजिए


















प्यार की लहर आये  बता दीजिए
थोड़ा - थोड़ा सही पर जता दीजिए
है ज़माना  नया हम नये लोग हैं 
नये  अंदाज़  में  ही  सता दीजिए

कुलबुलाता हो दिल तो बता दीजिए 
प्रेम  का कुछ  इशारा ज़रा  दीजिए
मुझसे ज्यादा प्रतीक्षा न होगी प्रिये 
जो भी हाँ ,ना है जल्दी बता दीजिए

प्यार की पींगे जल्दी बढ़ा दीजिए
सावन पे रंग अपना चढ़ा दीजिये
कम बहुत होते मौसम जवानी के जी 
सोचने में न इसको गँवा दीजिए

फैसला  लीजिये , फैसला  दीजिए
प्यार को प्यार का ही सिला दीजिए 
हो गयी जो जवानी भ्रमित प्यार पर 
प्यार का फिर ये रस्ता भुला दीजिए 


पवन तिवारी
सम्वाद - ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

हमने प्यार कर लिया











हमने प्यार कर लिया क्या गुनाह कर लिया
ऐतबार  कर  लिया क्या गुनाह कर लिया
उम्र  ही  ऐसी  है  दिल  बहक जो गया
उसने पूछा है प्यार, तो इक़रार कर लिया

हमने  इक दूसरे पे ऐतबार  कर  लिया
इक़रार बार - बार कई  बार  कर लिया
इस क़दर  चाहतों का नशा  चढ़  गया
हमने ख़ुद को ही ख़ुद बेक़ऱार कर लिया

हमनें वादा  सनम  कई हज़ार कर लिया
ख़ुद को इक दूसरे पर निसार कर लिया
अब तो बस प्यारी ही सारी दुनिया लगे
इसमें ही जीना मरना स्वीकार कर लिया

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८


बुधवार, 18 जुलाई 2018

तुम्हें देखूँ जब भी


तुम्हें देखूँ जब भी तो लगता ऐसे
कि जैसे मेरा सब तुम्हारे लिए है
देखा सपन प्रेम का जो भी मैंने
ये नैनों का सपना तुम्हारे लिए है

रहा था मेरा जो सदा ज़िंदगी में
वो सब भी मेरा तुम्हारे लिए है
कैसे बताऊँ तुम्हें हद से चाहूँ
मेरा घर मेरा दिल तुम्हारे लिए है

तुम्हारे लिए गीत गाये ये मैंने
मेरी हर ग़ज़ल भी तुम्हारे लिए है
मेरी धड़कनों में तुम्हारा ही स्वर है
मेरी शाम-सुबह तुम्हारे लिए है

तुम्हारे लिए ही मेरा हँसना रोना
ये साँसों की गर्मी तुम्हारे लिए है
मेरा कुछ रहा ना हुआ सब तुम्हारा
ये मेरी ज़िंदगी बस तुम्हारे लिए है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

बुधवार, 11 जुलाई 2018

सफ़र

















सफर अच्छा लगता है
बुरा लगता है
सफ़र लुटेरा लगता है
या बस पथिक लगता है
क्या लगता है ?
लोग हैं !
लोगों को जाने क्या-क्या लगता है !
पर मैं विचारता हूँ ?
मुझे तो हर सफ़र
एक पूरा जीवन लगता है
एक पूरी - की - पूरी
नयी ज़िंदगी लगता है
सफ़र में बहुत कुछ छूट जाता है
रिश्ते,गाँव,नगर,मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू
पुरानी पहचान,जिनसे हम रोज़ मिलते थे
वे भी हमें पहचानते थे,पर कहते कुछ न थे
पोखर,मैदान,खलिहान,टीले,खेत,घर
गलियाँ,सड़कें,चाय की गुमटियाँ,
पान की टपरियां, भौजाइयों की ठिठोलियाँ
हम उम्र लड़कियों से आखों वाले कमाल
छूट जाती हैं मंदिर में उछल कर
बजाने वाली घंटियाँ
ठीक वैसे ही जैसे जिन्दगी में
जाते-जाते छूट जाते हैं
इच्छाओं के अनेक छोटे बड़े गट्ठर
हाँ, सफर में बहुत कुछ मिल जाता है
नये लोग, नये रिश्ते, नई पहचाने
नई मिट्टी, नया नगर,नये मैदान
नई गलियाँ, पहाड़, सड़कें, नये मित्र
नये काम और बहुत कुछ
सफर नई दुनिया से मिलवाता है
जैसे जिन्दगी मिलवाती रहती है
रोज नये रिश्तों और दुनिया से
माता-पिता से होते हुए साली – साले
नाती – नतिनी, मित्र - शत्रु  और
नदियों,झीलों,समुद्र,संस्कृतियों,इतिहासों ,
नये - नये गाँव ,कस्बों और नगरों से
सच बताऊँ,मुझे हर सफ़र
एक नयी जिन्दगी लगता है
जिसमें पूरा एक जीवन घटता है
जिसमें सुख – दुःख, लुटना – पाना
सब होता है, जो एक जिन्दगी में होता है
अब आप बताइए ....
सफर आप को क्या लगता है

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com




मंगलवार, 10 जुलाई 2018

पावस का यह अनुपम मौसम


पावस का यह अनुपम मौसम
दुर्लभ हो गया अपना संगम
पवन झकोरे बारिश के संग
रिमझिम-रिमझिम लहरे ये मन

कितने बरस हुए प्रीत निभाये
सावन के संग गीत न गाये
कसक हिया में कसक के रह गयी
इस पावस भी तुम न आये

झींसी रिमझिम - रिमझिम गाये
अंग - अंग में अगन लगाये
टिप - टुप पड़ें मेंह की बूँदें
तरुणाई का मन ललचाये

ये सावन भी रीत न जाए
प्रणय भरा मन खीझ न जाए
सावन से पहले आ जाओ
अब की चाहे कुछ हो जाए

ये अभिलाषा मर ना जाए
उर का अमिय सूख न जाए
सारे बंधन तोड़ के आओ
तुम बिन सावन जिया न जाए  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

तुम कहानी मैं उसका बस इक पात्र हूँ



तुम कहानी मैं उसका बस इक पात्र हूँ
पात्र  हूँ  पर   चरित्र  में  उद्दात   हूँ
मेरे  बिन  नाम  की  बस रहेगी कथा
किन्तु  जीवित  कहानी  का मैं प्राण हूँ

तुमको गौरव है सौन्दर्य की देवी हो
मानता  रूप की , प्रेम की कवी हो  
किन्तु , मैं शब्द हूँ प्रेम के रूप का
शब्द बिन तुम प्रिये नाम की कवी हो

प्रेम  के रामायण  की  अनुवाद  हो
तुम तो मानस हो जग में अपवाद हो
मुझको तुलसी समझ के स्वीकारो प्रिये
प्रेम  अपना  ऋचाओं  का  संवाद  हो

कामपत्री  हो  तुम , मैं अनंग प्रिये
तुम  धरा  हो तो मैं हूँ अनन्त प्रिये
आचरण , इच्छा , मन है पवित्र प्रिये
है निवेदन , बना लो मुझे,  कंत प्रिये
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com