बुधवार, 11 जुलाई 2018

सफ़र

















सफर अच्छा लगता है
बुरा लगता है
सफ़र लुटेरा लगता है
या बस पथिक लगता है
क्या लगता है ?
लोग हैं !
लोगों को जाने क्या-क्या लगता है !
पर मैं विचारता हूँ ?
मुझे तो हर सफ़र
एक पूरा जीवन लगता है
एक पूरी - की - पूरी
नयी ज़िंदगी लगता है
सफ़र में बहुत कुछ छूट जाता है
रिश्ते,गाँव,नगर,मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू
पुरानी पहचान,जिनसे हम रोज़ मिलते थे
वे भी हमें पहचानते थे,पर कहते कुछ न थे
पोखर,मैदान,खलिहान,टीले,खेत,घर
गलियाँ,सड़कें,चाय की गुमटियाँ,
पान की टपरियां, भौजाइयों की ठिठोलियाँ
हम उम्र लड़कियों से आखों वाले कमाल
छूट जाती हैं मंदिर में उछल कर
बजाने वाली घंटियाँ
ठीक वैसे ही जैसे जिन्दगी में
जाते-जाते छूट जाते हैं
इच्छाओं के अनेक छोटे बड़े गट्ठर
हाँ, सफर में बहुत कुछ मिल जाता है
नये लोग, नये रिश्ते, नई पहचाने
नई मिट्टी, नया नगर,नये मैदान
नई गलियाँ, पहाड़, सड़कें, नये मित्र
नये काम और बहुत कुछ
सफर नई दुनिया से मिलवाता है
जैसे जिन्दगी मिलवाती रहती है
रोज नये रिश्तों और दुनिया से
माता-पिता से होते हुए साली – साले
नाती – नतिनी, मित्र - शत्रु  और
नदियों,झीलों,समुद्र,संस्कृतियों,इतिहासों ,
नये - नये गाँव ,कस्बों और नगरों से
सच बताऊँ,मुझे हर सफ़र
एक नयी जिन्दगी लगता है
जिसमें पूरा एक जीवन घटता है
जिसमें सुख – दुःख, लुटना – पाना
सब होता है, जो एक जिन्दगी में होता है
अब आप बताइए ....
सफर आप को क्या लगता है

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com




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