मंगलवार, 10 जुलाई 2018

पावस का यह अनुपम मौसम


पावस का यह अनुपम मौसम
दुर्लभ हो गया अपना संगम
पवन झकोरे बारिश के संग
रिमझिम-रिमझिम लहरे ये मन

कितने बरस हुए प्रीत निभाये
सावन के संग गीत न गाये
कसक हिया में कसक के रह गयी
इस पावस भी तुम न आये

झींसी रिमझिम - रिमझिम गाये
अंग - अंग में अगन लगाये
टिप - टुप पड़ें मेंह की बूँदें
तरुणाई का मन ललचाये

ये सावन भी रीत न जाए
प्रणय भरा मन खीझ न जाए
सावन से पहले आ जाओ
अब की चाहे कुछ हो जाए

ये अभिलाषा मर ना जाए
उर का अमिय सूख न जाए
सारे बंधन तोड़ के आओ
तुम बिन सावन जिया न जाए  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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