रविवार, 29 जुलाई 2018

जग की प्रिय बतकही


















जग की प्रिय बतकही है निंदा
बहुतों  का  रस रत्न है निंदा
पर जो लक्ष्य को लेकर दृढ़ हैं
उनके   आगे   बेबस   निंदा

जो सच को लेकर है जिन्दा
जो सपनों  को लेकर जिंदा
अवरोधक  जितने  हैं इनके
होंगे   सब  शर्मिंदा  जिंदा

पहले  तो  सब  रोकेंगे
बात - बात  पर टोकेंगे
फिर भी ना माने जो बढ़ गये
कहके  सनकी  झोकेंगे

दुनिया  पर  तुम कान न दो
नहीं व न  पर ध्यान  न दो
कुछ भी कहें सम्बंधी,परिचित
पर  उनको  अपमान  न दो

बढ़ने लगोगे जब तुम आगे
कानाफूसी   पीछे  –  आगे
फिसल के उनकी जुंबा कहेगी
जाएगा  ये पता  था  आगे

ऐसे में  खुशियाँ  पाओगे
चाहोगे  जो  वो  पाओगे
जो दुश्मन थे मीत बनेंगे
गीत खुशी के गा पाओगे       

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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