मंगलवार, 31 जुलाई 2018

मित्र, मित्र से भी जलता है



राग द्वेष का भी क्या कहना
दोनों भी जीवन का गहना
मित्र, मित्र से भी जलता है
मुझसे बेहतर उसका रहना

ज़्यादा बातें अपनी कहना
कम में भी कम उसकी सुनना
मित्र से श्रेष्ठ दिखाना खुद को
गढ़ – गढ़ झूठ को सच करना

मित्र चाहता खुश रहूँ मैं
उससे ज्यादा पर न रहूँ मैं
ऐसा किन्तु, परन्तु जो होए
फिर न ह्रदय से मित्र रहूँ मैं

सबसे बुरा मित्र का ताना
लगे हिया में बंद हो जाना
दोनों तने-तने जो रह गये
टूटे उर का ताना – बाना  

एक दूजे को धैर्य से सुनना
थोड़ा कहना ज्यादा सुनना
गुनना कुछ कहने से पहले
तो जीवन भर साथ में हँसना


पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें