यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

तेरे कदमों में गिरुं और उठूँ नज़रों में











मेरी  चाहत  नहीं  पूरी  दुनिया  मैं  पाऊँ
उतना  ही  दे  प्रभू  जितना  समेट  पाऊँ

देखकर   दुनिया   ये   हसरत   जागी
अब  मैं  खुद  को  खुद  ही  देख  पाऊँ

बहुत से लोग और रिश्तों की दरकार  नहीं
लोग  सच्चे हों , भले थोड़े , मैं सहेज पाऊँ

मेरी चाहत रही है रिश्तों को लेकर  अक्सर
मिलें जब भी मिलें तो सच्चे और नेक पाऊँ

तेरे  कदमों  में गिरुं  और  उठूँ  नज़रों में
इतनी ख्वाहिश तू मुस्कराए तो माँ देख पाऊँ

जब  कभी  दर्द  मिले  इतना  कि रो जाऊँ
तेरे  आंचल  में माँ  खुद को  मैं समेट पाऊँ


पवन तिवारी
सम्पर्क –  7718080978

poetpawan50@gmail.com

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