शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो रहा है























मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो रहा है
कोई तुझसे क्या बेवफा हो रहा है

चेहरे की तेरे क्यों रंगत उड़ी है
कोई तेरा अपना दगा दे रहा है

उदासी नहीं अच्छी होती कभी भी
तूं नजरों से अपनी गिरा जा रहा है

हो बेफिकर तूं बढ़ जिन्दगी में
सफलता का तेरे समय हो रहा है

ठोकर सिखाती असल जिन्दगी है
अभी सच में तूँ आदमी हो रहा है

जाने कितनी ठोकर,खाये ‘पवन’
तभी जिन्दगी में सफल हो रहा है


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

वो जो खुद को साहब आफताब कहते हैं

























वो जो खुद को साहब आफताब कहते हैं 
कोई दीपक जो जल उठे तो बहुत जलते हैं

दूसरों को मिले मौका ये उनकी चाहत है
कभी चाहत जो हो पूरी तो हाथ मलते हैं

वैसे तो किसी को तवज्जो वो नहीं देते
गर स्वार्थ साढ़े तो घर तक भी चलते हैं

वैसे तो जिंदगी भर हड़पा ही उन्होंने
महफ़िल में कैमरें हों तो दान करते हैं

है पारखी नज़र नगर में नाम है बड़ा
नजर मिल जाए ना कहीं नजर मिलने से डरते हैं

जमाने भर ऐसे ऐसे तो बहुतेरे मिलते हैं
खुद को बताते और पर कुछ और होते हैं


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com


शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

दीप जले हो नाश तिमिर का


























दीप जले हो नाश तिमिर का 
अंतर्मन में हो उजियारा

कष्ट हरो लक्ष्मी नारायण
ज्योंतिर्मय हो जीवन सारा

ज्ञान की ज्योंति जले भारत में
उससे दमके ये जग सारा

ये दीपावली पावन पर्व है
सब हों पावन ध्येय हमारा

सबका मंगल सत्य की जय हो
दीपावली का एक ही नारा

पवन तिवारी
सम्पर्क -  7718080978
poetpawan50@gmail.com


दीप जले





















दीप जले, द्वेष जले, स्नेह मिले .
मन खुले,दिल मिले,सखियाँ मिलें .

दीप जले, अहंकार जले, गरिमा मिले .
शांति मिले,मान मिले,रागिनियाँ मिलें .

दीप जले, विकार जले, पौरुष मिले .
विवेक मिले,सद्मार्ग मिले,बधाइयाँ मिलें .

दीप जले, पाप जले, पुण्य मिले .
स्वास्थ्य मिले,भक्ति मिले,खुशियाँ मिलें .

दीप जले, मोह जले,  न्याय मिले .
धर्म मिले,सत्संग मिले,अमराइयाँ मिलें .

दीप जले, अज्ञान जले, क्षमा मिले .
गीत मिले,संगीत मिले,स्वर लहरियाँ मिलें .

कुछ मिले या ना मिले पर हे प्रभू .
इस दीपावली हमको सच्चे मीत मिलें .

पवन तिवारी 


सम्पर्क – 7718080978

सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

कहते हैं खुश रहो मगर रहने नहीं देते

























दिल के वे मामलात को करने नहीं देते 
कहते हैं खुश रहो मगर रहने नहीं  देते

गम ये नहीं है कि कभी भी मार देते हैं
गम ये है कि वो मार के मरने नहीं देते

कुछ दोस्त अपने स्वार्थ में इतने हुए अंधे
दुश्मन जो आये सुलह को करने नहीं देते

देते हैं वे आशीष कि फूलो फलो तुम खूब
पर एक फूल को भी वो  खिलने नहीं देते

दुश्मनों से दोस्ती का वक़्त आ गया
 दोस्त ही अब दोस्त को बढ़ने नहीं देते

ज्यादा भी नहीं ठीक 'पवन' दोस्ती में प्यार
लग जाए अगर आग तो बुझने नहीं देते

  
पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


ईमेल- poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

धूप - कविता





















सुबह उठा खिड़की ज्यों खोला 
धूप मेरे घर में घुस आई
था उदास घर मेरा जो
चमक उठा घर धूप जो आई

ठण्ड से मेरे बुझे बदन को
धूप ने आकर कर दी सेंकाई
झुके रोम सब खड़े हो गये
धूप की प्यारी गर्मी पाई

कई दिनों पर मिली जो धूप
चेहरे खिलकर हो गये धूप
जाड़े में महाऔषधि लागे
सबको प्यारी लगती धूप

यही ग्रीष्म में मिलें दोपहर
तब दुश्मन लगती है धूप
छाँव ढूंढते धूप से बचते
कहते बड़ी प्रचंड है धूप


पवन तिवारी
सम्पर्क -  7718080978
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सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

बचपन - बाल कविता

























बचपन  तो  बचपन होता है 
वही  सच्चा  जीवन होता है
जो  मन  करे वही करते थे
फिक्र  न कोई  गम होता है

गुल्ली - डंडा   खूब  खेलते
खाते  ख़ूब  व  दण्ड  पेलते
चलती राह में गीत भी गाते
खेल - खेल में धूप में जलते

बेपरवाह   समय  से  रहते
बात किसी की एक न सहते
बड़ा कोई  जब डांट था देता
मार के  ढेला  दूर से भगते

आम   तोड़   अमरुद  चुराते
टोली  संग  फिर मौज मनाते
जो भी खाते सब-मिल-जुलकर
लड़ते और फिर भूल भी जाते

जोर - जोर  से  गाना गाते
कच्चे आम नमक संग खाते
निज  बातें  घर नहीं बताते
यारों  संग  खूब   बतियाते

रुखा - सूखा जो मिल जाता
पेट भरे तक छक कर खाता
मूली  मिर्ची नमक प्याज से
मिलकर सब अच्छा हो जाता

चोखा - चटनी कभी अचार
उसमें हो अम्मा  का दुलार
सारे  व्यंजन  फेल हैं फिर
चूनी   रोटी   चटनी  यार

बचपन  में  जो खाया पिया
उसी ने अब तक साथ दिया
पढ़ा–लिखा जो था बचपन में
उसी ने अब तक काम किया

अब तो कुछ भी याद न होता
सब  रट  जाते  बचपन होता
सावधान   मुद्रा   में   होकर
कविता  सुना  रहा  मैं  होता

मुंशी  जी    देते   शाबाशी
ताली  बजती  अच्छी खासी
कक्षा  में  जम  जाता  रोब
मिलती  मुझे  जिलेबी ताजी

अब तो बस यादों में बचपन
कुर्ता  छोड़  पहनते अचकन
सच्चा  जीवन  क्या होता है
सोचूँ  तो बस केवल बचपन  

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

       

प्रात आया सुबह तो महक सी गयी - हिन्दी ग़ज़ल



















प्रात आया सुबह तो महक सी गयी

चिड़ियों के कलरव से चहक सी गयी

 धूप पाकर  प्रकृति मुस्कराने लगी
प्रात आया धरा तो लहक सी गयी

भोर के शोर से उल्लसित  मन हुआ
इक नयी आस जीवन में जग सी गयी

 एक नव वेग से जग चल है पड़ा
देखकर ये निशा  सहम सी गयी

सुमन हैं खिल गये गान भ्रमरों का है
दृश्य यूं देख धूप बहक सी गयी

 जो दिवाकर की पहली किरण आ पड़ी
ये धरा नव वधू बनके  सज सी गयी

देखा जो सूर्य को खिलखिलाते हुए 
थी निराशा जो मन में वो मर सी गयी

नव ऊर्जा जगी इस नये वार पर
नकारात्मकता सूखे विटप सी गयी

पवन तिवारी

सम्पर्क- ७७१८०८०९७८
Poetpawan50@gmail.com

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

हो परेशान मन हाथ भी तंग हो

































हो परेशान मन हाथ भी तंग हो

ऐसे में क्रोध घर को जला देता है

क्या गलत क्या सही मायने कुछ नहीं
क्रोध अपनों को भी झुलसा देता है

लाख विश्वास हो और समर्पण भी हो
तंगहाली में सब कुछ दगा देता है

प्रेम,पत्नी,गृहस्ती के सब आवरण
तंगहाली का शस्त्र हटा देता है

वक़्त हो गर बुरा ज़ेब भी हल्की हो
रिश्तों की परिभाषा ढहा देता है

सारे विश्वासों का वक़्त है आइना
अडिग विश्वासों को भी डिगा देता है

आइना तो कभी झूठ बोले नहीं
टूट कर भी पवनसच बता देता है  

पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८