सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

बचपन - बाल कविता

























बचपन  तो  बचपन होता है 
वही  सच्चा  जीवन होता है
जो  मन  करे वही करते थे
फिक्र  न कोई  गम होता है

गुल्ली - डंडा   खूब  खेलते
खाते  ख़ूब  व  दण्ड  पेलते
चलती राह में गीत भी गाते
खेल - खेल में धूप में जलते

बेपरवाह   समय  से  रहते
बात किसी की एक न सहते
बड़ा कोई  जब डांट था देता
मार के  ढेला  दूर से भगते

आम   तोड़   अमरुद  चुराते
टोली  संग  फिर मौज मनाते
जो भी खाते सब-मिल-जुलकर
लड़ते और फिर भूल भी जाते

जोर - जोर  से  गाना गाते
कच्चे आम नमक संग खाते
निज  बातें  घर नहीं बताते
यारों  संग  खूब   बतियाते

रुखा - सूखा जो मिल जाता
पेट भरे तक छक कर खाता
मूली  मिर्ची नमक प्याज से
मिलकर सब अच्छा हो जाता

चोखा - चटनी कभी अचार
उसमें हो अम्मा  का दुलार
सारे  व्यंजन  फेल हैं फिर
चूनी   रोटी   चटनी  यार

बचपन  में  जो खाया पिया
उसी ने अब तक साथ दिया
पढ़ा–लिखा जो था बचपन में
उसी ने अब तक काम किया

अब तो कुछ भी याद न होता
सब  रट  जाते  बचपन होता
सावधान   मुद्रा   में   होकर
कविता  सुना  रहा  मैं  होता

मुंशी  जी    देते   शाबाशी
ताली  बजती  अच्छी खासी
कक्षा  में  जम  जाता  रोब
मिलती  मुझे  जिलेबी ताजी

अब तो बस यादों में बचपन
कुर्ता  छोड़  पहनते अचकन
सच्चा  जीवन  क्या होता है
सोचूँ  तो बस केवल बचपन  

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

       

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