शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

वो जो खुद को साहब आफताब कहते हैं

























वो जो खुद को साहब आफताब कहते हैं 
कोई दीपक जो जल उठे तो बहुत जलते हैं

दूसरों को मिले मौका ये उनकी चाहत है
कभी चाहत जो हो पूरी तो हाथ मलते हैं

वैसे तो किसी को तवज्जो वो नहीं देते
गर स्वार्थ साढ़े तो घर तक भी चलते हैं

वैसे तो जिंदगी भर हड़पा ही उन्होंने
महफ़िल में कैमरें हों तो दान करते हैं

है पारखी नज़र नगर में नाम है बड़ा
नजर मिल जाए ना कहीं नजर मिलने से डरते हैं

जमाने भर ऐसे ऐसे तो बहुतेरे मिलते हैं
खुद को बताते और पर कुछ और होते हैं


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com


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