यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 5 अगस्त 2017

लिखते हो छंद कविता या जानते भी हो






























लिखते हो छंद कविता या जानते भी हो
मुख ने तुम्हारा ही जाने क्यों नाम ले लिया

जब झूम के मौसम प्रिये सावन का आया
तेरी सुनहरी यादों से तब काम ले लिया

पत्नी ने पूछा तुमने कभी प्रणय था किया
जिह्वा ने बेझिझक तेरा ही नाम ले लिया

मित्र ने तेरे नाम से इक जाम रख दिया
पीता नहीं था फिर भी मगर जाम ले लिया

कैसे भलाई का विचार उर में लाऊं मैं
जिसको बचाया था पुलिस में नाम ले लिया

चाय की दुकां है मेरी आइये कभी
मित्र था वो चाय का भी दाम ले लिया

यादों की दुकां का सुना कि हाट लगा है
जाकर तुम्हारी यादों की इक शाम ले लिया


ये शाम मनोरम क्या होती है ‘’पवन’’
अधरों ने तेरी अलकों का ही नाम ले लिया


पवन तिवारी

सम्पर्क -  7718080978
poetpawan50@gmail.com
  


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