यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 23 जून 2017

आज-कल उनकी यादें















आज-कल उनकी यादें
उतने सीधे रास्ते से नहीं आती
मगर ऐसा भी नहीं कि नहीं आती
अब सीधे रास्ते से कम आती हैं
बहुत घुमा फिरा कर आती हैं
वाया-वाया बहुत आती हैं

और वो भी ऐसा कि आँखें नहीं
दिल को गीला कर जाती हैं
आंखों का क्या... कभी कभी...
आने वाली तुम्हारी यादें
आंखों को गिला नहीं करती
डुबो देती है गीलेपन के बीचो-बीच

सब धुंधला दिखने लगता है
तुम्हारी यादों के सिवा
क्योंकि तब मैं आंखों से नहीं
दिल से देखता और महसूस करता हूं
तुम्हें पता है... आज तुम्हारी याद...
एक फिल्म देखते हुए आई..

जब एक शादीशुदा प्रेमी जोड़ा
किसी बात पर एक दूसरे को
डबडबाई आंखों से तसल्ली दे रहे थे
उनकी तो बस आंखें डबडबा आई थी
पर तब मुझे तुम्हारा नाजुक मजबूत कंधा
और तुम्हारे गले की खुशबू याद आई
मेरी पीठ पर तुम्हारी ढाढस की मासूम
आहिस्ता पड़नें वाली थपकी याद आई
तब मेरी आंखे सिर्फ डबडबाई नहीं
बल्कि भरकर गालों पर छलक पड़ी
मेरी धड़कनें पूरी रफ्तार से दौड़नें लगी
ठीक वैसे ही जैसे मैंने पहली बार तुम्हें बाहों में भरा था

क्योंकि हमें तो प्यार शादी के बाद हुआ था
तुम्हें पता है... पर पता कैसे होगा...?
तुम तो पास हो ही नहीं...
पर पाइथागोरस की प्रमेय की तरह मान लो...
हां,तो पता है, कल जब मैं
मंदिर के रास्ते से गुजर रहा था

एक आदमी या शायद पति
को माथे पर टीका लगाई और
फिर पल्लू से पोंछने लगी
वो पल्लू से उसका पोंछना
फिर तुम्हारी यादों में
खींच कर ले गया

जब मैं घर से किसी नए काम के लिए
निकलता था तुम भी यूँ ही टीका लगाती थी
और ठीक से न लगने पर
पल्लू से पोंछकर फिर से लगाती थी
तुम्हारी तरह तुम्हारी यादें भी नटखट हैं
पर प्यारी भी हैं, आती है, मगर

घूम फिर कर बहाने से
दूसरों की ओट में छुपते छुपाते
पर जानती हो आजकल
मैं तुम्हारी तरह सजता हूं
जैसे तुम दर्पण के सामने
मांग में सिंदूर भरती थी बड़े ख्याल से

अब मैं भी बड़े ख्याल से
दर्पण के सामने खड़ा होकर
टीका लगाता हूं कहीं
टेढ़ा तो नहीं लगा और
तुम्हारे पल्लू से तो नहीं
पर तुम्हारे छूटे हुए दुपट्टे से पोंछ लेता हूं

पहले तुम्हारी यादें सपनों में आती थीं
अचानक हिचकी में भी आ जाती थीं
पर आजकल तुम
दूसरों के बहाने से याद आती हो
यह बहाने याद दिलाते हैं कि
हम शादी के बाद वाले ही सच्चे प्रेमी हैं

यह खुलेआम मंदिर पर
पल्लू से माथा रगड़ना
एक पत्नी जितनी सरलता से कर सकती है
शायद ही कोई और...
खैर.. इतनी सारी अदाएं साथ गुजार कर
और छोड़ कर जाती हो कि यूं ही
बहाने से याद आती रहेंगी तुम्हारी यादें

और सोचता हूं तुम भी जल्दी आओगी

पवन तिवारी 
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क- 7718080978

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