यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

सोंच-समझकर















कई बार हम वादे करते हैं सोंच-समझकर
मगर किस्मत वादे तोड़ देती है बेकार समझकर

कई बार जिसे हम छोड़ देते हैं गैर बेकार समझकर
बुरे हालात में काम आया वही जिसे छोड़ा था बेकार समझकर

कुछ जमाने में उधार भी मांगते हैं तो अधिकार समझकर
उधार वापस मांगो तो देते हैं खैरात समझ कर

दोस्ती करो,प्यार करो, या व्यापार करो,कुछ भी करो

मगर जब लब खोलो,बात बढ़ाओ, या सर झुकाओ सोंच समझकर

poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क-7718080978

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें