यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 25 जून 2016

‘’ भूख ने मरकर बदला लिया मुझसे...”

मेरे शुरुआती दिनों की, डेढ़ दशक पहले लिखी गई, मार्मिक कविता

एक शाम बागीचे में, उदास था बैठा,
महसूस हुआ अचानक ! पेट का खालीपन,
उस महसूसपन को, करना चाहा नजरअंदाज
फिर भी पीठ से चिपके पेट को, आँख ने देख ही लिया,
एक हूक, एक मीठा सा दर्द उठा,
मैं समझ गया, भूख है. सोचने लगा ....
तभी भूख बोली,मुझे 3 दिनों से ढो रहे हो.
भरी जवानी में!ये मुझसे कैसा बदला,
तुम जवान,मैं भी जवान
हाँ तुम्हें जवान होने में 18 साल लगे हैं,
पर मैं 8 घंटे में ही जवान हो जाती हूँ.
हम दोनों की जरूरत है...
मैंने डांटा उसे, खूबजोर से
इतना कि उखड़ने लगीं मेरी सांसे,
वह डरके दुबक गई,
शायद, आमाशय के किसी के किसी कोने में
मैं पाकर शांति, खोजा सार्वजनिक जल का नल,
मुफ्त में पिया, जीभर कर जल
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एक दिन बाद भूख मुझसे बोली,
शायद बेवकूफ बनाने के नेक इरादे से...
देखो मेरे लिए न सही,अपने लिए ही सही
खाओ कुछ तो...
मजबूर सा था मैं...
बिन बुलाये मुफ्त में, आ गया गुस्सा
उसे दीं मुफ्त में गालियाँ...
निर्लज्ज , कमीनी, स्वार्थी...
 जब मुझे नहीं है खाने की चाह,
फिर तूं क्यों पड़ी है पीछे मेरे,
भूख को भी आया गुस्सा, बोली-
जाओ मरो...और आया मुझे चक्कर,
मामला बेहोशी पर जाकर पटा .
 आस – पास की भीड़ ने पढ़े कई मन्त्र-तन्त्र
सुंघाए जूते, सुंघाए प्याज, पढ़े मन्त्र,
मुँह पर मारे जल के छीटे,
हुआ मुक्त बेहोशी से, पुनः आयी स्फूर्ति
महसूस हुआ, भूख की सलाह है ठीक
उस रात खाया, एक समोसा बड़े जुगाड़ से
इसी तरह जिन्दा रखा ,
खुद को थोड़े – थोड़े जुगाड़ से,
भूख ने देख लिया था, 
मेरी मजबूरियों की रसोई को
शायद, इसीलिये उसने साध ली थी चुप्पी,
उसे आदत पड़ गयी थी ...
भूख घुट – घुट कर मर रही थी, अंदर ही अन्दर.
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समय बदला , हालात बदले,
थोड़ी आसान हुई, रोटियों की जुगाड़.
पर भूख थी नाराज, उसने मुँह,जीभ और लार कों
न खाने,न पचाने की, दे रखी थी कसम
जिन रोटियों के लिए मैनें किये
कई वर्षों तक अनवरत युद्ध
 अब वे मुझे पसंद नहीं करती.
एक दिन अचानक कार्यालय में,
हो गया बेहोश, अचानक!
घबराकर कर्मचारी ले गये,
आनन – फानन में अस्पताल...
चिकित्सक देखकर बोला –
इन्हें खिलाइए – भरपेट,ठीक से खाना,
कमजोरी की शिकायत,कर्मचारी हक्के-बक्के
दो दिन बाद,चिकित्सक ने कहा-
मर गयी है आप की भूख,
उसे फिर जिन्दा करने के लिए
चिकित्सक ने दी कई दवाइयाँ,
मुझे याद आये वो अपने,
जवानी के शुरुआती दिन
जब मैंने सताया था,भूख को
हद से भी ज्यादा,
 ‘’ भूख ने मरकर बदला लिया मुझसे...”





1 टिप्पणी:

  1. भैया जी आपने अपने संघर्ष को बहुत ही मार्मिक तरीक़े से व्यक्त किया, अति सुंदर।

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