हद
से ज्यादा जब अशांति बढ़ जाती है
बिना
युद्ध के शांति नहीं तब आती है
शान्ति
सभी मोती माणिक से महँगी है
कितनों
का जीवन वैभव खा जाती है
किसकी
भी हो विजय पराजय हो किसकी
कम
ज्यादा पर हानि सभी की होती है
पिता
पुत्र को पत्नी पति को मांयें संतति खोती हैं
जिनके
अपने घर उजड़े हैं उनकी क्या गति होती है
इसीलिये
अशांति से पहले संवादों से हल कर लें
नहीं
सुझाई हल देता तो समझौतों का मन कर लें
वरना
अंत मलाल तो होगा हारेंगे या जीतेंगे
थोड़ी
तेरी थोड़ी मेरी मिलकर कुछ ऐसा कर लें
वरना
युद्ध तो बलि लेता है, रक्त को जल सा पीता है
धर्म
ध्यान तब काम न आता युद्ध स्वयं तब गीता है
जब
तक शांति तभी तक सीता जनक नंदिनी है
युद्ध
हुआ तो सीता ना तब काली सीता है
पवन
तिवारी
१२ /०५/२५