गुरुवार, 26 जून 2025

जिन दिनों



जिन दिनों,

ज़िन्दगी जी रहा! था

सब कुछ

अच्छा लग रहा था!

जब से ज़िन्दगी

कटने लगी है,

ज़िन्दगी से

ऊब हो गयी है!

यह ऊब तो

बिलकुल कटती नहीं है!

इसे काटने के लिए

अक्सर सो जाता हूँ, और

शाम को उठाता हूँ! और

फिर शाम नहीं कटती!

और तो और

रात तो एकदम

हरजाई जैसी है!

कटने को कौन कहे

ये काटती है!

जब रात ही काटने लगे,

फिर ज़िन्दगी कैसे कटे ?

ज़िन्दगी को जीने से

जितना सुख है,

उसको काटना

उतना ही बड़ा दुःख!

 

पवन तिवारी

 ११/०६/२०२५


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