शनिवार, 23 अगस्त 2025

उर सरिता सा कल कल बहता



अपने हिय का हाल कहूँ क्या

जो अक्सर धक धक करता था

उस हिय का स्वर बदल गया है

उर सरिता सा कल कल बहता

प्रेम की भाषा सा कुछ कहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

यह परिवर्तन सहज नहीं है

जब से उन्हें घाट पर देखा

तब से यह मन बदल गया है

अब तो हँसकर सब है सहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

रुखा - सूखा सा जीवन था

अक्सर धूल उड़ा करती थी

जैसे सब कुछ बदल गया है

अब ठोकर भी हँसकर सहता  

उर सरिता सा कल कल बहता

 

लोग पूछते क्या खाते हो

चमक आ गयी है चेहरे पर

भाव ही सारा बदल गया है

कैसे कहूँ प्रेम में रहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

उनको कुछ भी पता नहीं है

इधर हर्ष का मौसम आया

कितना पावन प्रेम है होता

कैसे जीवन बदल गया है

सारा कलुष सतत है ढहता  

उर सरिता सा कल कल बहता

 

पवन तिवारी

२३/०८/२०२५   

 


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