बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

तू किसी और की हो गयी



तू किसी और की हो गयी

ज़िन्दगी यूँ लगी खो गयी

था लगा तेरे बिन कुछ नहीं

तू गयी ज़िन्दगी तो गयी

 

स्वप्न की रागिनी सो गयी

कीमती सबसे जो खो गयी

कुछ दिनों तक चला सिलसिला

वक्त की चाल सब धो गयी

 

कोई पूछे कहाँ को गयी

मैं भी कह दूं गयी तो गयी

अब पुरानी कहानी सी है

बात आयी गयी हो गयी

 

लगता है अच्छा अब जो गयी

प्रेम का रंग सब धो गयी

फिर से यात्रा सुघर है हुई

अब कहानी सही हो गयी

 

पवन तिवारी

१५/१०/२०२५


10 टिप्‍पणियां:

  1. विरह का गीत मन भिगो गया।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बात आयी गयी हो जाये तो जीवन हर पल नया है, वरना तो हर कदम पर पैरों के आगे कोई पत्थर रख गया है

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