सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

अपने सिद्धांत, ठसक सर पे लिए चलते हैं,



अपने सिद्धांत, ठसक

सर पे लिए चलते हैं,

और इस ज़िन्दगी में

रोज थोड़ा मरते हैं.

 

रोज़ हँसते हैं मुस्करा के

गले मिलते हैं,

और अंदर के घाव

रोज थोड़ा सिलते हैं.

 

आज दीवाली पे

मेरे घर में अंधेरा है भले,

मेरे अंदर कई चराग

कब से जलते हैं.

 

एक तन्हाई ये जो

रोज़ डाँटती है मुझे,

कितने लेखक इसी पे

मरते, मरते, मरते हैं.

 

यूँ ही घंटों से अकेले में

जो हूँ सोच रहा,

लोग सरेआम उसपे

रोज बात करते हैं.

 

मैंने अब तक जो जिया

वो क़िताब उम्दा है,

इसीलिये इ
से पढ़ने से

लोग डरते हैं.

 

मरोगे जब तुम्हारी

ज़िन्दगी बिकेगी बहुत,

पवन कोई जीवनी

कोई आत्मकथा कहते हैं.

 

पवन तिवारी

२८/१०/२०२४

(गोवत्स द्वादशी)    

 

बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

धान होती हैं बेटियाँ




बेटियाँ एक घर में

पैदा होती हैं और ,

एक उम्र होने पर

दूसरे घर में

रोप दी जाती हैं ;

ठीक धान की तरह !

सूखे वाले क्षेत्र में

लोग नहीं ब्याहते बेटियाँ ,

और लोग

नहीं रोपते धान !

आज कल कहीं भी

पड़ जाता है अकाल ,

सारा श्रम

दम तोड़ देता है !

लुटेरा इंद्र जैसे लूटा था

अहल्या को; आज भी

लूट ले रहा है ,

भरे दिन, दोपहरी ,

धान को, बेटियों को !

ओह, दिन दहाड़े

कोई है... जो दे सके शाप ;

उठा सके गोवर्धन !

 

पवन तिवारी

१८/०८/२०२१

परिष्करण ९/१०/२०२४

   

 

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

दुनिया में बहुत कुछ भारी है



दुनिया में

बहुत कुछ भारी है,

किंतु, जब दिन कट जाता है

रात भी कट जाती है;

और कटती है उम्र

पर नहीं कटती जिंदगी!

सब कुछ चलते हुए

ठहरा लगता है,

बस ! वो भाव,

सबसे भारी होता है!

 

पवन तिवारी

०८/१०/२०२४

प्रतिरोध का आनंद


 

 

 

कोई पुराना परिचित

पुराना विरोधी

तुम्हें फूटी आँख भी

न देखने वाला,

अकस्मात देखकर

मुस्कराने लगे,

तुमसे मीठे स्वर में

करें संवाद,

तब समझ जाना

कोई बड़ा संकट

आने वाला है!

भागना मत;

परीक्षा देना,

अपने अनुभव, समझ,

धैर्य, सबको इकठ्ठा करना

और मुस्करा कर

करना सामना,

फिर देखना,

दोनों ओर

आनन्द होगा,

प्रतिरोध का आनन्द !   

रविवार, 6 अक्टूबर 2024

कितने दिन पर गीत लिखा हूँ



कितने दिन पर गीत लिखा हूँ 

जाने किसको मीत लिखा हूँ 

कुछ मीठा सा लिखना था पर 

जाने क्यों मैं तीत लिखा हूँ 


गर्मीं में भी शीत लिखा हूँ 

कैसी उल्टी रीत लिखा हूँ 

जीवन भर अक्सर हारा हूँ 

पर गीतों में जीत लिखा हूँ 


झुके हुओं को भीत लिखा हूँ 

अनजानों को हीत लिखा हूँ 

कवि अलबेले फक्कड़ होते

 कड़वों को भी प्रीत लिखा हूँ 


पवन तिवारी ०६/०९/२०२४