शुक्रवार, 28 जून 2024

छूटना


 

 

गाँव छूटा

सपनों की ख़ातिर !

शहर बसा,

अपनों की ख़ातिर !

अपने छूटे,

पैसों की ख़ातिर !

फिर पैसा छूटा,

संबंधों ख़ातिर !

फिर सब छूटा,

जीवन के लिए !

फिर जीवन छूटा,

मृत्यु के लिए !

तो इस तरह

सब छूट गया !

अब सब खाली है ;

न सपने, न अपने

न पैसा, न संबंध

न जीवन, न मृत्यु !

 

पवन तिवारी

२८/०६/२०२४   

 

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