मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

हम कहानी में ऐसे समेटे गये



हम  कहानी  में  ऐसे  समेटे  गये

बाँह   में   जैसे  धागे   लपेटे  गये

अपनी छोटी मगर भूमिका महती थी

छोटे बिन गलती के भी चपेटे गये

 

कान बहुधा सभी अंगों से छोटे थे

गलती  दूजे   करें  पर  उमेटे  गये

 

हम थे त्रुटिहीन फिर भी उठाये गये

नेत्र के  शस्त्र  से  भय  दिखाये गये

थी सभा छात्रों की हम भी मासूम थे

बस अकारण  उठाये - बिठाये गये

 

कल तलक अनवरत सा वहीं क्रम रहा

हमको  अपमान  के  पथ  दिखाये गये

 

हमने सोचा भला क्यों सताये गये

ज़िन्दगी में अकारण भगाये गये

अब जो प्रतिकार का मैनें निर्णय लिया

अहं कितनों के ही लतियाये गये

 

शत्रु हैं अब बहुत मित्र उंगली पे हैं

जब से सच वाले दर्पण दिखाये गये

 

मित्रता  शत्रुता  हम  जताते  गये

कौन  अपना  पराया  बताते गये

जिंदगी में कठिनता बढ़ा भय भी था

हँस के संघर्ष को हम सताते गये

 

ऐसे आनंद जीने का था बढ़ गया

हर्ष  के  साथ  संकट  उठाते गये

 

पवन तिवारी

१९/१२/२०२२  

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

शीत की रात में



शीत की रात  में  ज़िन्दगी यूँ ढले

माता की गोद में जैसे बालक पले

छोटी-छोटी चुहल  भी करे असहज

इक रजाई हटाने  से  भी है खले

 

ऐसे मौसम में तन कुछ सिकुड़ता भी है

एक मन है कि ज्यादा मचलता भी है

फसलों में भी ख़ुशी का यही है समय

वृद्धों का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ता भी है

 

ऐसे मौसम में  ही चाय चाहत बने

जो अभावों में हैं उनको आफ़त बने

देता सुख भी है ये देता दुःख भी है ये  

प्रेमी मन के  लिए  जैसे दावत बने

 

पवन तिवारी

२८/११/२०२२  

बुधवार, 23 नवंबर 2022

छल है घृणित अस्त्र जीवन में



छल है घृणित अस्त्र जीवन में

अपनों  से  बहुधा  मिलता है

उनसे जो क्षति  हिय की होती

उसको अन्य  कोई  सिलता है

 

अल्प अवधि के लिए मिले दुःख

तो दुःख से   जीवन   खिलता है

दाग  अगर  मन पर  अंकित हो

ऐसे     में     धीमे     धुलता     है

 

चित्र   हैं    बहुरंगी   जीवन  के

रंग   किन्तु   कोई   फलता  है

पर   कुछ   रंग   उभरते   ऐसे

जिनसे   जीवन  भी  जलता है

 

जलता  बुझाता  जैसे  दीपक

ऐसे  कुछ  जीवन   पलता  है

नहीं समझ पाता जो ये  सब

जीवन में  वो  हाथ मलता है

 

जीवन तो  सबसे  अनुपम है

इसीलिये ये मृत्यु को खलता

इसको   पाने   के  प्रयास में

यम जीवन भर  पीछे चलता

 

पवन तिवारी

२३/११/२०२२           

  

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

अपने लोग पराये होते



अपने लोग पराये होते

और पराये अपने

जीवन में तो देख ही रहे

नींद में भी ये सपने

 

सच से पीछा छुड़ा रहे हैं

झूठ लगे हैं जपने

सर्दी के मौसम में भी कुछ

लोग लगे हैं तपने

 

जिन्हें कहे हैं अपना उनको

देख लगे हैं कंपने

जान बचाकर यूँ भागे कि

लगे जोर से ह्न्फने

 

छोटे-छोटे व्यवहारों में

जीवन लगा है खपने

घर की छोटी कलह लगी है

अखबारों में छपने

 

पवन तिवारी

१५/११/२०२२

 

 

सोमवार, 7 नवंबर 2022

मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता



मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता

मूढ़  को  प्राप्त  जैसे  हुई  बुद्धता

लोग कहते  आवारा  नकारा भी थे

लोगों को मुझमें अब दिखती प्रतिबद्धता

 

जग के तानों ने मुझको किया त्रस्त था

मेरे उत्साह  को  भी  किया पस्त था

भाग्यवश तुम मिली या कि जैसा भी हो

एक बेचारा जीवन  में फिर व्यस्त था

 

प्रेम  ने  मार्ग  मेरा  प्रशस्त किया

क्रूर गृह मेरे जितने थे अस्त किया

तुम ही लक्ष्मी तुम्हीं शारदा हो प्रिये

सारे अवरोधों को तुमने ध्वस्त किया

 

प्रेम जादू नहीं  उससे  भी श्रेष्ठ है

प्रेम सारे गुणों  में सहज ज्येष्ठ है

एक ओछे को इसने किया शिष्ट है

प्रेम पाकर लगा अब कि यथेष्ट है

 

पवन तिवारी

०६/११/२०२२

रविवार, 6 नवंबर 2022

चिंता ने चिन्तन को मारा

चिंता ने चिन्तन को मारा

अंदर  साहस  थोड़ा  हारा

फिर क्रोध का पथ कुछ सुगम हुआ

चढ़ आया मस्तक तक पारा

 

सुख के दिन स्वप्न हुए जैसे

उलझन में मन कि हुआ कैसे

फिर आय घटी बढ़ गये खर्चे

जोड़ने   पड़े    पैसे   पैसे

 

संख्या अपनों की घटने लगी

किच-किच आपस में बढ़ने लगी  

संतोष  घटा   ईर्ष्या  जागी

छाया रिश्तों  पर पड़ने लगी

 

चिंता जीवन  को  नष्ट करे

तन मन को पूरा  भ्रष्ट करे

इससे बचने का  यत्न सदा

अन्यथा सभी में  कष्ट करे

 

संतोष करें  चिंतन  कर लें

मन के गुल्लक खुशियाँ भर लें

आवश्यकता  अभिलाषा नहीं

इस मन्तर की उंगली धर लें

 

पवन तिवारी

०१/११/२०२२  

 

   

 

शनिवार, 29 अक्टूबर 2022

हम बेटे !



कहने को  हम राज दुलारे

कुल दीपक कह ताने मारे

थोड़े  खेले  मस्ती  कर लें

कहलाते बिलकुल आवारे

 

बेटी कहकर बच जाती है

हमको डांट   खिलाती है

दुनियाँ भी माँ बेटी पर ही

कविता  गीत  सुनाती है

 

बिटिया,गुड़िया, देवी, रानी

रौनक    परी    कहाती   है

हम बेटों के  हिस्से में क्यों

मार  -  कुटाई    आती   है

 

घर से बाहर धूल धूप में

हम ही  जान  लगाते हैं

बड़े हुए तो सबका ज़िम्मा

दोनों   काँध   उठाते  हैं

 

बहन की शादी माँ की दवाई

बाबू जी  की  आँख  बनाई

खेती से घर  तक का खर्चा

अपने हाल  की ना सुनवाई

 

लड़का हूँ सो  रोना मना है

अपना सपना  टूटा चना है

हम भी हाड़  मास के बच्चे

बेटा  होना   जैसे गुना  है

 

बेटों पर  भी  कोई कहानी

कोई किस्सा  लिख दो ना

बहनें  प्यारी  हमें  दुलारी

हम पर भी कुछ लिख दो  ना

 

बेटों का कब  स्वर आयेगा

कोई       गीत     सुनाएगा

ओ रचने वालों  कविता में

किस  दिन   बेटा  आयेगा

 

पवन तिवारी

२७/१०/२०२२                 

सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

झिलमिल स्वप्न लिए नैनों में

झिलमिल स्वप्न लिए नैनों में लौट के आया हूँ

करके  युद्ध  मृत्यु  से  सीधे जीवन लाया हूँ

बहुत  रुलाये  नैन  नासिका  दोनों  ही टपके

पोंछ  कलाई  से सिसका  हूँ पर फिर गाया हूँ

 

मृत्यु सरल है कठिन है जीवन

जीवन  भटके  जैसे वन – वन

फिर  भी  प्रेम  करें  जीवन से

जीवन   ही   है   तन  मन धन

 

जीवन  है  तो  अभिलाषा  है

चारो  ओर   दिखे  आशा  है

नये स्वप्न  नए लक्ष्य हैं गढ़ते

जीवन  की  कितनी  भाषा है

 

मृत्यु  निरस  है खेल बिगाड़े

अभिलाषा  सपनों  को  मारे

इसीलिये  ज़िन्दगी  प्रशंसित

जो जग  में  जीवन  को धारे

 

पवन तिवारी

०५/१०/२०२२

उदासियों ने घेर रक्खा है

उदासियों    ने    घेर   रक्खा   है

हमने भी खूब दुःख को चक्खा है

कोई  दिखता  नहीं है दूर तलक

दर्द अपने  भी  सर पे अक्खा है

 

रात  कुछ  नींद  काट  देती है

दिन की  सौगात  जान लेती है

शाम  सुई  सी  चुभोती  जैसे

ज़िन्दगी  बारिशों  की खेती है

 

आज-कल रोज खुद से घिरता हूँ

खुद  से ही मारा-मारा फिरता हूँ

इतना उलझा हूँ खुद में क्या ही कहूँ

धीरे चलता हूँ फिर भी गिरता हूँ

 

यही समय  है  संभलना इससे

सब पराये  हैं  तो कहें किससे

धीर रखना है वक़्त फिरने तक

सुनेंगे  सब  ही  कहेंगे जिससे

 

पवन तिवारी

०८/१०/२०२२