सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

झिलमिल स्वप्न लिए नैनों में

झिलमिल स्वप्न लिए नैनों में लौट के आया हूँ

करके  युद्ध  मृत्यु  से  सीधे जीवन लाया हूँ

बहुत  रुलाये  नैन  नासिका  दोनों  ही टपके

पोंछ  कलाई  से सिसका  हूँ पर फिर गाया हूँ

 

मृत्यु सरल है कठिन है जीवन

जीवन  भटके  जैसे वन – वन

फिर  भी  प्रेम  करें  जीवन से

जीवन   ही   है   तन  मन धन

 

जीवन  है  तो  अभिलाषा  है

चारो  ओर   दिखे  आशा  है

नये स्वप्न  नए लक्ष्य हैं गढ़ते

जीवन  की  कितनी  भाषा है

 

मृत्यु  निरस  है खेल बिगाड़े

अभिलाषा  सपनों  को  मारे

इसीलिये  ज़िन्दगी  प्रशंसित

जो जग  में  जीवन  को धारे

 

पवन तिवारी

०५/१०/२०२२

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय पवन जी।अनुभूतियाँ व्यक्तिगत ही सही पर पीर सारे जग की कहती हैं।बहुत- बहुत शुभकामनाएं 🌷

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