सोमवार, 7 नवंबर 2022

मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता



मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता

मूढ़  को  प्राप्त  जैसे  हुई  बुद्धता

लोग कहते  आवारा  नकारा भी थे

लोगों को मुझमें अब दिखती प्रतिबद्धता

 

जग के तानों ने मुझको किया त्रस्त था

मेरे उत्साह  को  भी  किया पस्त था

भाग्यवश तुम मिली या कि जैसा भी हो

एक बेचारा जीवन  में फिर व्यस्त था

 

प्रेम  ने  मार्ग  मेरा  प्रशस्त किया

क्रूर गृह मेरे जितने थे अस्त किया

तुम ही लक्ष्मी तुम्हीं शारदा हो प्रिये

सारे अवरोधों को तुमने ध्वस्त किया

 

प्रेम जादू नहीं  उससे  भी श्रेष्ठ है

प्रेम सारे गुणों  में सहज ज्येष्ठ है

एक ओछे को इसने किया शिष्ट है

प्रेम पाकर लगा अब कि यथेष्ट है

 

पवन तिवारी

०६/११/२०२२

3 टिप्‍पणियां:

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  2. प्रेम जादू नहीं उससे भी श्रेष्ठ है
    प्रेम सारे गुणों में सहज ज्येष्ठ है
    एक ओछे को इसने किया शिष्ट है
    प्रेम पाकर लगा अब कि यथेष्ट है////
    अत्यंत भाव-पूर्ण अभियक्ति प्रिय पवन जी 👌🙏

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