यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 24 जुलाई 2022

मेरे इतिवृत्त में

मेरे इतिवृत्त में, रूचि  इतनी  कहाँ से आयी

मेरा उर टूटा है,  धोखे  से  तुम ख़ुशी पायी

डाह  से  कैसे   कोई,  हर्षित  हो  अंतरतम

इतनी अधम विद्या कहो कैसे हो तुम लायी

 

एक हिय फटा तो,  दूजा  विहँस रहा कैसे

हाय मनुज  होकर  भी  तुमने  सहा  कैसे

पीड़ा  को  देख  कोई,  कैसे हो उल्लसित

ऐसे मन को धिकधिक कुछ नहीं कहा कैसे

 

प्रेम के अभिरूप में ये, धब्बा रख  देते हैं

प्रेमी  से  नाहक,  प्रतिशोध  कैसे  लेते हैं

प्रेम ने किसी का,  बिगाड़ा भी कुछ नहीं

दुश्मनी के अंडे सा फिर क्यों कुछ सेते हैं

 

प्रेम कर रहे  हो तो, लड़ना  भी  सीखो

प्रेम के लिए  दृढ़ हो,  अड़ना भी सीखो

प्रेम का उत्सर्ग  ऐसा,  रचता  इतिहास

मारना भी सीखो और मरना भी सीखो

 

पवन तिवारी

१९/०४/२०२२

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