यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

रात की धूप सा

रात की धूप सा तेरा माथा

पवन भी गाये तेरी गाथा

जल में जो तेरी शक्ल उभरती

जल भी देख कर जलने लगता

 

 

कुछ ऐसा सौंदर्य है तेरा

साँच कहूँ लागे क्या मेरा

नैनों में तेरे दर्पण है

गोल गोल बड़ा सुंदर लगता

 

 

हाथों में जादुई छुअन है

अधर लगे ज्यों खिला सुमन है

मोहित होना सहज ही सबका

मानस तेरा भूप सा लगता

 

 

है उरोज मलयागिरि पर्वत

प्रति प्रति शब्द है तेरा शरबत

कमल के जैसी आभा तेरी

शशि जैसा कुछ रूप है लगता

 

 

रूप है तेरे रूप से जलता

तेरे संग बसंत है चलता

सुंदरता से भी तू सुंदर

प्रति-प्रति अंग दिव्य सा लगता

 

 

पवन तिवारी

 

२६/०३/२०२१

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