शनिवार, 26 जून 2021

मारुति नंदन जग वंदन हैं

मारुति नंदन जग वंदन हैं राम पियारे मन चन्दन हैं

पीड़ा के पीड़क हैं हनुमत शिव अवतार जगत वंदन हैं

दीनन के हैं एक सहारे जग भर में सो अभिनन्दन हैं

जौ महावीर कृपा हो जाये जीवन में नंदन नंदन हैं

 

गरुण को मान दिए हनुमत जी तुलसी को राम दिए हनुमंत जी

राम कथा के प्रथम प्रशंसक वीर के वीर हैं संत के संत जी

सारी सिद्धियों के हैं साधक बलवानों में हैं बलवंत जी

अंजनि लाल पे सिय आशीष है भक्ति सागर हैं श्रीमंत जी

 

मित्र के मित्र हैं जग में विशिष्ट हैं भक्ति विवेक के हैं ये आगर

आप की महिमा शारदा गावैं दुखियन के प्रभु आप हैं नागर

हे करूणानिधि लो हमरी सुधि आप तो हैं अमृत के गागर

मन संताप हरो हनुमान जी हे पिंगाक्ष दया दे सागर

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८ 

४/०८/२०२०

शहद से दिल को नीम कर दिया

शहद से दिल को नीम कर दिया

स्वर्ण कलश में जहर  भर दिया

गंदे  मन  से  प्रेम  को  छूकर

अवसादों का  प्रेम को  वर दिया

 

रूप ने कितनी बार छला है

सबसे छलिया उसकी कला है

रूप में मनुज देव तक उलझे

समझ सके ना कैसी बला है

 

प्रेम का रूप कोई ना देखा

सबने रूप के रूप को देखा

रूप ने रूप में  भरमा डाला

रूप का  देखा  सबने देखा

 

भोले - भाले  लुट  जाते हैं

धड़कन-धड़कन टुट जाते हैं

इस फरेब में पड़  के दिल

धक धक धक धक दुःख पाते हैं

 

किसको-किसको कर दिया घायल

किसके हिस्से आयी पायल

सच्चे प्रेम का रूप नहीं है

प्रभु जी सच्चे प्रेम के कायल

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०३/०८/२०२०  

 

मेरे गीत दर्द के गायक

मेरे गीत दर्द के गायक

दर्द जिये हैं दर्द के लायक

जो भी हैं पीड़ा के अगुआ

उनके लिए ए हैं सुखदायक

 

हम किसान के भी बेटे हैं

गीत खेत में भी लेटे हैं

किसने किसने खेत चरा है

लिख लिखकर खुद ही मेटे हैं

 

जिसका लम्बा सा ये हल है

उसके दुःख का कोई हल है

पर मेरे गीतों के हल में

उसका छोटा सा इक हल है

 

मेरे गीत अकाल लिखे हैं

बाढ़ का त्रासद भाल लिखें हैं

कृषकों के झूठे भाषण पर

सरकारों के गाल लिखे हैं

 

धूल व ढेले मेरे सगे हैं

चिकने-चुपड़े देख भगे हैं

कोठी वाले क्या जानेंगे

मेड़ों पर मेरे गीत उगे हैं

 

दूब का गीत सुनाने वाले

आलू के संग खाने वाले

ठेंठ के ठाठ को सब ना समझें

समझें ऐसे गाने वाले

 

थोड़े से पर हीत मिलेंगे

कच्ची राह के मीत मिलेंगे

तुम्हें मिलाने ले जाऊँगा

गाँवों में मेरे गीत मिलेंगे

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

२/०८/२०२०  

रिश्तों में अब वार को गया

रिश्तों में  अब  वार को गया

प्रेम  भी  कारोबार  हो  गया

प्रेम को गुणा गणित कुछ समझें

एक  दिनी  अखबार  हो गया

 

प्रेम में हँसकर  दगा  कमाते

अपराधी    आरोप   लगाते

प्रेम में छलकर जीत समझते

व्यंग्य  भरी  मुस्कान सजाते

 

प्रेम तो होता हिय का लगाना

किन्तु थोड़ा मस्तिष्क लगाना

कर विश्वास सजग भी रहना

ख़ुद से ज्यादा  नेह  लगाना

 

छल फिर उतना नहीं खलेगा

ऐसे में हिय कम  ही जलेगा

छलिया प्रेम से उबर  सकोगे

ज्यादा से कम  वक्त लगेगा

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

२/०८/२०२०

 

कुछ रिश्ते होते हैं चंदन

जैसे अपना रक्षाबन्धन

भाव सुरक्षा  का है पावन

भाई- बहन के नेह का बंधन     

अपने तन को उल्लास दिया

 

अपने तन को उल्लास दिया

मेरे मन को  वनवास दिया

जीवन भर  अविश्वास  रहे

छल का ऐसा विश्वास दिया

 

जो अपने का भी ना होता

वह धीरे - धीरे सब खोता

खुद के चरित्र में दाग़ लगा

तन को घिस-घिस कर है धोता

 

पर के परिवार  पे छत डाला

मन के विपरीत में मत डाला

तन की अभिलाषा की खातिर

हिय के मयूर को  हत डाला

 

अब भटक रहा है वन-वन में

हो रहा तिरस्कृत जन-जन में

अपराध करे जो निज के संग

गिरकर मरना निज के मन में

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०५/०८/२०२०  

सोमवार, 21 जून 2021

हिय का खेत मेरा बंजर था

हिय का खेत मेरा बंजर था तुमने उसे बनाया उपवन

ऐसे प्रिय को कैसे ना मैं अर्पित कर दूँ अपना तन मन

हिय के खेत में खुशहाली है फसलें प्रेम की लहराती हैं

इससे पहले भटक  रहा था  आवारा मन वन वन वन

 

आम के जैसा बौराया हूँ जब से तुमको मैं पाया हूँ

जंगल-जंगल भटक रहा था लौट के अपने घर आया हूँ

प्रेम कलश तुमसे पाकर मैं छलक उठा पूरा अन्दर से

बड़े दिनों तक खोया मन था अब जाकर खुल के गाया हूँ

 

धूप को तुमने छाँव बनाया इक सुंदर सा ठाँव बनाया

प्रेम से तुमने वीराने को इक सुंदर सा गाँव बनाया

थोड़ी-थोड़ी जान रहा मैं महिमा प्रेम की दिन-प्रतिदिन

तपती हुई जवानी पर प्रिय प्रेम का सुंदर छाँव बनाया  

 

तुम मेरे जीवन का मान हो नंगे बदन पे तुम परिधान हो

तुम ऐसी गुणवान प्रिये हो बिना वाद्य के सुर में गान हो

 प्रेम मिला तो सब कुछ सुंदर जीने की लालसा बढ़ी है

अब समझा क्यों प्रेम है पूजित ईश्वर का यह परम मान है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणुडाक – poetpawan50@gmail.com

30/07/2020

 

 

प्रेम के जलते दीये में जल है डाला

प्रेम के  जलते  दीये  में  जल  है डाला

प्रेम की  खातिर मैं फिर भी जल  रहा हूँ

कैसे खुद के   प्रेम  को  बदनाम  कर दूँ

उसके खल पर चुप हूँ खुद को छल रहा हूँ

 

सच है उसने हिय को  बेरहमी  से तोड़ा

किन्तु  साहस  के  सहारे  चल  रहा हूँ

जिस कलम को वो निकम्मा कह गया है

उस  कलम  के  ही  सहारे  पल रहा हूँ

 

जिस दीये को तुम  बुझाना चाहते  हो

एक  दिन  उसके  उजाले  में चलोगे

यज्ञ की हूँ अग्नि मुझको मत बुझाओ

ऐसा   करके  भी  भला फूलो फलोगे

 

तुम  गहोगे  प्रेम  को यूँ  शस्त्र  जैसा

प्रेम को यूं  अर्थ  की  खातिर  छलोगे

अर्थ खुशियाँ  दे  हमेशा  सच  नहीं है

आचरण को  खोते  ही  तुम भी गलोगे

 

चाहते हो तुम मुझे  जग में गिराना

हाँ, गिरूँगा गंग की जलधार बनकर

डूब जाऊँ मैं कि  अँधियारी गुफा में

हाँ,मैं डूबूँगा मगर ज्यों सांध्य दिनकर

 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१/०८/२०२०

प्यार में होके भी ना बह सके

प्यार में होके भी ना बह सके

ये कह सके ना वो कह सके

बहुत ही खटकती थी ये दूरियाँ

न ये रह सके न ही वो रह सके

 

बहुत कुछ था कहना बहुत कुछ था सुनना

ऐसे में भी तय हुआ चुप रहना

गज़ब धीर इनका व शैली अनोखी

कि चेहरे की भाषा में आँखों से कहना

 

जब देखो तब आगे-पीछे ही चलना

देखें तो बस दूर से हाथ मलना

मिलने से कोई मनाही नहीं थी

मगर दोनों ने ठाना था फ़कत यूं ही जलना

 

फिर कहा एक दिन दोनों ने हमें कुछ है कहना

हमें एक दूजे के है साथ रहना

फिर राम मंदिर में शादी रचाई

कुछ यूँ सजा इनके जीवन का गहना

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८  

 

१/०८/२०२०  

दुःख देने की अपनी खुमारी

दुःख देने की अपनी खुमारी

सबकी  बारी,  बारी – बारी

दुःख देने वालों को मिलती

सबसे सुंदर वक़्त की गारी

 

दुःख जीवन का असली साथी

सुख की तो  छोटी सी बाती

दुःख का निराकरण ही सुख है

फिर भी दुनिया सुख–सुख गाती

 

सुख-दुःख जीवन भर रहता है

ये  सारा  जग  भी कहता है

फिर भी हम केवल सुख चाहें

स्वारथ का  मन  यूं बहता है

 

सबको सम होकर स्वीकारो

थोड़ा - थोड़ा मन को मारो

करना मुश्किल कहना आसाँ

पर प्रयास  से  जीवन तारो

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

३१/०७/२०२०     

 

पहले मैं संध्या को आता

पहले मैं  संध्या को आता

सबसे पहले  दिया जलाता

दोनों में  अभिवादन  होता

दोनों का चेहरा खिल जाता

 

अब दोनों उदास मिलते हैं

ख़ुद में ही  दोनों जलते हैं

है अपराध बोध  दीपक को

मेरे  चुप से  वे  घुलते हैं

 

उसने मुझको  गलते देखा

अपनों द्वारा  छलते देखा

मेरे  चेहरे  की  आभा को

उसने  केवल  ढलते  देखा   

 

अब दीपक पे नज़र जो जाती

उसकी  लौ  मद्धम हो जाती

उसके लौ की सहज ही मस्ती

मुझे  देखते  ही  खो  जाती

 

खुद की करता खुद निंदा है

ज़रा - ज़रा सा ही ज़िन्दा है

षड्यंत्रों को  देख के चुप था

इसीलिये   वो   शर्मिंदा  है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

३१/०७/२०२०