सोमवार, 21 जून 2021

हिय का खेत मेरा बंजर था

हिय का खेत मेरा बंजर था तुमने उसे बनाया उपवन

ऐसे प्रिय को कैसे ना मैं अर्पित कर दूँ अपना तन मन

हिय के खेत में खुशहाली है फसलें प्रेम की लहराती हैं

इससे पहले भटक  रहा था  आवारा मन वन वन वन

 

आम के जैसा बौराया हूँ जब से तुमको मैं पाया हूँ

जंगल-जंगल भटक रहा था लौट के अपने घर आया हूँ

प्रेम कलश तुमसे पाकर मैं छलक उठा पूरा अन्दर से

बड़े दिनों तक खोया मन था अब जाकर खुल के गाया हूँ

 

धूप को तुमने छाँव बनाया इक सुंदर सा ठाँव बनाया

प्रेम से तुमने वीराने को इक सुंदर सा गाँव बनाया

थोड़ी-थोड़ी जान रहा मैं महिमा प्रेम की दिन-प्रतिदिन

तपती हुई जवानी पर प्रिय प्रेम का सुंदर छाँव बनाया  

 

तुम मेरे जीवन का मान हो नंगे बदन पे तुम परिधान हो

तुम ऐसी गुणवान प्रिये हो बिना वाद्य के सुर में गान हो

 प्रेम मिला तो सब कुछ सुंदर जीने की लालसा बढ़ी है

अब समझा क्यों प्रेम है पूजित ईश्वर का यह परम मान है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणुडाक – poetpawan50@gmail.com

30/07/2020

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें