सोमवार, 21 जून 2021

प्रेम के जलते दीये में जल है डाला

प्रेम के  जलते  दीये  में  जल  है डाला

प्रेम की  खातिर मैं फिर भी जल  रहा हूँ

कैसे खुद के   प्रेम  को  बदनाम  कर दूँ

उसके खल पर चुप हूँ खुद को छल रहा हूँ

 

सच है उसने हिय को  बेरहमी  से तोड़ा

किन्तु  साहस  के  सहारे  चल  रहा हूँ

जिस कलम को वो निकम्मा कह गया है

उस  कलम  के  ही  सहारे  पल रहा हूँ

 

जिस दीये को तुम  बुझाना चाहते  हो

एक  दिन  उसके  उजाले  में चलोगे

यज्ञ की हूँ अग्नि मुझको मत बुझाओ

ऐसा   करके  भी  भला फूलो फलोगे

 

तुम  गहोगे  प्रेम  को यूँ  शस्त्र  जैसा

प्रेम को यूं  अर्थ  की  खातिर  छलोगे

अर्थ खुशियाँ  दे  हमेशा  सच  नहीं है

आचरण को  खोते  ही  तुम भी गलोगे

 

चाहते हो तुम मुझे  जग में गिराना

हाँ, गिरूँगा गंग की जलधार बनकर

डूब जाऊँ मैं कि  अँधियारी गुफा में

हाँ,मैं डूबूँगा मगर ज्यों सांध्य दिनकर

 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१/०८/२०२०

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