शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

राम के नाम ...सवैया


राम के नाम ले तर ही गयी चाहे नीयत किसकी कैसी हो खोटी
हरदम राम  अगाध  रहे  हर  गागर  राम के  नाम  से छोटी
राम के नाम से  तुलसी तरयो जग में फहराय रही ताकी चोटी
राम  चरित  मानस में  ब्यापौ  गाय रहे  हैं जी कोटिन कोटी

राम के काज में लीन हुए, कहि राम  हुए हनुमान  जी जोगी
राम के नाम अहिल्या तरी शबरी प्रभु धाम की हो गयी भोगी
रामहि नाम प्रताप बड़ा  बस नाम  जपें  होई  जाएँ  निरोगी
कलयुग में बस राम अधार हैं नइया पार  जी  राम से होगी  

जिस दुनिया  के राम आधार हैं, उनको कहें कुछ स्वार्थी खोटा
राम  को धूर्त  नकार रहे,   जिनका  जग में परताप है मोटा
राम ही धर्म हैं राम ही कर्म हैं जग उनके सम छोटा सा लोटा
राम को देने चुनौती चले हैं, जो उनका चरित्तर छोटों में छोटा



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

वे हमको देहाती


वे हमको  देहाती  हमको  घास - फूस समझे हैं
सच तो ये है जो भी हैं हम हम अपने दम से हैं

तुम हमें जानों  हिन्दू  मुस्लिम  सिख  इसाई जानो
दुनिया तो बस इतना जाने हम भारत से भारत के हैं

सच व झूठ वफ़ा  गद्दारी  सबकी अपनी परिभाषा है
मिट्टी का अपमान करें जो मेरी नज़र में दुश्मन वे हैं

निज भाषा को हीन बताते पर भाषा का गान करें
उनसे पूछो वे  भारत में  और भारत के कब से हैं  

धर्म जाति और पन्थ वर्ण पर तुमको जो गाना गाओ
हम  इस  माटी के  बेटे हैं  और  इसी  की गाते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

सोमवार, 27 जनवरी 2020

क्या बसन्त कैसा बसन्त


क्या बसन्त  कैसा  बसन्त
सबके अपने अपने  बसन्त
अपनी भी एक मान्यता रही
कब  होता है अपना बसन्त

देवों से  लेकर  मानव तक
सबने गुण गाये  हैं बसन्त
जब हम खुश होते जीवन में  
तब बसन्त आता है

भँवरों, पुष्पों से सरसों तक
गाये जाते हैं  गुण बसन्त
जब कोई मेरे मन को भाये
तब बसन्त आता है

माना वह सबको भाता है
प्रेम बहुत सा वह पाता है
कुछ जब हम अच्छा पाते हैं
तब बसन्त आता है

अपना तो  अंदाज  अलग है
अपना एक अलग ही जग है
मौसम अपने  मन का आये
तब बसन्त आता है

प्रकृति हँसी है पुष्प खिले हैं
वृक्षों में नव  पल्लव  आये
अपने अधर किन्तु जब खिलते
तब बसन्त आता है

उस बसन्त  का स्वागत है
जो सारी ऋतुओं का नृप है
मेरे उर का नृप प्रसन्न जब
तब बसन्त आता है

शब्द गीत और कथा काव्य में
सबने  गुण  गाये  बसन्त के
पर निर्धन जब खुलकर हँसता
तब बसन्त आता है

वंचित  शोषित से क्या  नाता
जिस बसन्त  के सभी प्रशंसक
जब कभी हर्ष आये  उनके गृह
तब बसन्त आता है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

सोमवार, 20 जनवरी 2020

ये जानूँ मैं पहले से उलझते नहीं हो तुम


ये जानूँ मैं  पहले  से उलझते  नहीं हो तुम
उसपे भी ये अच्छा कि बिफरते नहीं हो तुम

बिन माँगे  मशविरा  दें हर  बात पर टोकें
उस पर भी ये कहें कि समझते नहीं हो तुम

सब कहते कैसे झेलता हूँ इतनी  खामियाँ
है प्यार इसलिए ही  अखरते नहीं हो तुम  

है सामने उपवन  मगर  चुपचाप खड़े हो
कैसे हो आदमी  कि बहकते नहीं हो तुम

इतनी  मुसीबतों  को जो तुम फूँक दिये हो
है प्यार की ताकत जो बिखरते नहीं हो तुम

तुमसे  कोई  टकराता नहीं  यूँ ही बेवजह
ये  जानते हैं  लोग बिसरते  नहीं हो  तुम

आती  हुई  ख़ुशबू  से  अनजान  बने  हो
है कैसा दिल पवन कि मचलते नहीं हो तुम



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

तुम्हें मैं क्यूँ आवाज़ देता हूँ


तुम्हें मैं क्यूँ आवाज़ देता हूँ
सोचता हूँ क्यूँ साथ देता हूँ

देश का तो मैं दे नहीं सकता
चलो अपना  ही राज देता हूँ

भरोसा  ही  कोई  नहीं देता
तुम्हें  अपनी मैं बात देता हूँ

बुझ चुके हो तुम जो अन्दर से
आओ तुमको मैं  आग देता हूँ

थक गये हो तुम बहुत दिन से
आओ  तुमको मैं  रात देता हूँ

फक्कड़ी हो गयी हो तो आओ
तुम्हें  स्थायी  साथ  देता हूँ

तुम्हारा मसअला सुलझा हो अगर
आओ कुछ  और  प्यार  देता हूँ

अकेलेपन से भर गया हो दिल
पवन   आओ  खुमार  देता हूँ



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


तू क्या सोचा घर जायेंगे


तू क्या  सोचा घर  जायेंगे
तुझसे बिछड़ के मर जायेंगे

बहुतों के जी  रूप  सुनहरे
अंदर देख  के डर  जायेंगे

सच में प्रेम हुआ जो उनको
हमको छोड़  किधर  जायेंगे

हम आवारा दूजे  किसिम के
हम किसी और नगर जायेंगे

सब  राही  हैं शेष  झूठ है
आगे  पीछ  गुजर  जायेंगे

प्रेमी  प्रेम   नगर  जायेंगे
कहेंगे  नहीं  मगर  जायेंगे



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


गुरुवार, 9 जनवरी 2020

काम नहीं उनको


काम नहीं उनको वे लड़ते जा रहे हैं
कुछ काम करके भी मरते जा रहे हैं

कुछ सड़कों पर गालियाँ दे रहे हैं
कुछ हैं कि बस सुलगते जा रहे हैं

वो जहाँ भी बेहतर करने जा रहे हैं
हालात हैं कि  बिगड़ते  जा रहे हैं

उनके दुश्मनों की तादाद क्या बढ़ी
वो और भी ज्यादा निखरते जा रहे हैं

वे जो सुशासन के नाम पर आये हैं
वसूली के ही धंधे बढ़ते  जा रहे हैं

उन्होंने सपने महलों के क्या देखे
उनके झोपड़े भी उजड़ते जा रहे है

सभी को खुश करने के चक्कर में
कि अपने  भी बिछड़ते जा रहे हैं

जब से तय किया है लक्ष्य उसने
उसके तेवर ही बदलते जा रहे हैं


पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८

यूं ही गाली देना


यूं ही गाली देना अपराध है कि नहीं
क्या कहते हो खुराफ़ात है कि नहीं

आँखों आँखों में बात हो गयी
ये भी इक संवाद है कि नहीं

तुम हो ख़ूबसूरत और क्या कहूँ
अच्छी खासी दाद है कि  नहीं


चुप्पियों में भी बहुत कुछ कह गये
मौन  भी  सम्वाद  है  कि नहीं

बिना  बात  के  बात बढ़ाना
ये बताओ फसाद है कि नहीं


बात बात पर टूट जाता है दिल
क्या कहूँ इसे बर्बाद है कि नहीं

गाली देता है  खुलेआम  देश को
अजी बोलो ना आज़ाद है कि नहीं



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८



प्यार का इरादा है कि नहीं


प्यार का इरादा है कि नहीं
भूल गये वादा है कि नहीं

प्यार में भगवान बसता है
बात कितनी सदा है कि नहीं

नजर है तुम्हारी शरीर पर
प्यार में ज्यादा है कि नहीं



पवन तिवारी 
संवाद - ७७१८०८०९७८

ना तुम्हें लड़ना है


ना तुम्हें लड़ना है ना ही झगड़ना है
बस बढ़ते रहना किसी से न डरना है
मंजिल तो मिलनी है मंजिल को मिलना है
चलते चलते बढ़ते बढ़ते चाँद पे तुम्हें चढ़ना है

संघर्षों का दिया जलाए रखना है
उसके उजाले जीत के स्वाद को चखना है
उजले उजले बादल में पानी भरना
नीला होकर फिर रिमझिम-रिमझिम गिरना

ऊँची चोटी पर हँसते ही चढ़ जाना
अपने हाथों से ही तिरंगा फहराना
अपने हाथों पर ही भरोसा रखना है
चंदा, बादल, पर्वत सबको चखना है

पानी पर पानी लिखने वाले हो तुम
याद दिलाने आया हूँ तुम कहाँ हो गुम
जीवन अच्छा इतना भी आसान नहीं
जीवन कांटो वाला प्यारा सा है कुसुम

जग को जीत सको ये तुम में क्षमता है
जीत का तुम पर शाल-दुशाला जमता है
तुम हो कौन बताने इतना आया हूँ
तुम हो हीरा यही जताने आया हूँ

अच्छा चलता हूँ मैं फिर से आऊँगा
जीत के आओगे जब तब मैं आऊँगा
भूल न जाना मुझे सबक ये भी तो है
कुछ भी हो इतिहास उसी का जीता जो है

पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८  


मंगलवार, 7 जनवरी 2020

प्यार नफरत दोस्त दुश्मन


प्यार नफरत दोस्त दुश्मन सब वक्त के गुलाम
वक्त  भी  हारा  एक के आगे नाम नाम नाम

नाम  कमाने  की  परिपाटी  नई   चल  रही है
नाम तो होगा बुरा क्या अच्छा करते जाओ काम

नेता जी  का  कहना है डर होना बहुत जरुरी है
नाम के आगे बद का विशेषण अच्छा है बदनाम

ख़ास काम को ख़ास ही करे अब  ऐसा दस्तूर नहीं
आज के दौर में ख़ास काम को कर जाते कुछ आम

आज की दुनिया में तो यारों गुड़ से गोबर मँहगा है
भंगारों  के   भी  मिलते  हैं  अच्छे  खासे  दाम

शकल  देखने  के  दिन  बीते  कंप्यूटर  से  काम
आज की दुनिया में क्या बकते किसको प्यारा चाम

धरम करम  अधिकाश  दिखावा उसके पीछे काम
सब  माया  के  पीछे  भागे  नहीं  चाहिए  धाम

पवन यहाँ सब कुछ स्वार्थ से बचे  नहीं भगवान
राम  के  मन्दिर में ही बैठ कर लूट रहे हैं राम


पवन तिवारी
सम्वाद - ७७१८०८०९७८


उन्हें क्या कदर होगी बातों की


उन्हें क्या  कदर  होगी  बातों की
जो समझते भाषा फ़क्त लातों की


जो चल रहा है वही बड़ा मुश्किल है
और तुम बात कर रहे हो यादों की

तुम्हें क्या पता इश्क के बारे में घंटा
तुम बस गिनती करो अपने खातों की

इस सर्दी की नज़र है फुटपाथों पर
मुझे चिंता  है  उसके  रातों  की 

जिन्हें  पइसा  ही  माई बाप लगे
उन्हें  है क्या  कदर  जज्बातों की

वे  तो  बाज़ार  में  खड़े हैं पवन
उन्हें क्या समझ  रिश्ते नातों की
 

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८