गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

देखा जब से तुम्हें









देखा जब से तुम्हें लगे  सम्भावना
तुम  ही  हो प्रेम की मेरे उद्भावना
उर की व्याकुलता मिट जाए तुम जो मिलो
मेरे  हिय की तुम्हीं पावन  भावना  

प्रति  तुम्हारे  मेरे  मन में सद्भाव है
प्रेम करना  प्रकृति का भी स्वभाव है
मैं  भी  पूरा हो जाऊं  मिले प्रेम जो
प्रेम  का  मात्र  जीवन  में अभाव है

स्वप्न  में भी  तुम्हारे  ही सब रंग हैं
बिन  तुम्हारे  स्वप्न  सारे बाद रंग हैं
प्रति पल,प्रति क्षण बस  तुम्हीं सूझती
साथ  हो  जो तुम्हारा  तो जग संग है  

मेरे  उर  की  संसद   पड़ी  भंग  है
मेरी   दिनचर्या   आवारा   बेढंग  है
तुम जो आओगी तो  बात बन जायेगी
फड़क  के  कह  रहा  दाहिना अंग है 



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

प्रेम ही सुख का मूल











प्रेम  ही  सुख  का   मूल   आधार है
बिन   अनुराग  जीवन   निराधार है
इर्ष्या,दुःख,दुश्मनी को गला देता ये
प्रेम ही सच्चे जीवन का व्यवहार है

प्रेम  भी  एक  जीवन का  आहार है
डाह  का  प्रेम ही सच्चा प्रतिकार है
प्रेम बिन जिन्दगी बोझ हो जाती है
प्रेम  हो  साथ जीवन  तो सत्कार है

प्रेम का कोई निश्चित न आकार है
प्रेम  ईश्वर  सा  समझो निराकार है
प्रेम   पावन   दुलारी   सी  सम्वेदना
रूप   मानो तो कृष्णा सा साकार है

प्रेम प्रभु पर भक्तों का अधिकार है
प्रेम  यशोदा  किसन  का दुलार है
प्रेम  के  रूप अर्जुन व द्रोण भी हैं
प्रेम  गोपी  कन्हैया का मनुहार है.



पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
  



रविवार, 21 अप्रैल 2019

Lonely Soul's Lament















मेरी कविता 'देह के अंदर बाहर' का अंग्रेजी अनुवाद पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त श्री शिवकुमार शर्मा जी द्वारा.....



I am a lonely being;
I am not the crowd;
I am just myself.
I don't have to peep here and there;
I live just inside this frame;
Which is not my temple alone but my   universe !
Outside this frame I have no home.
Can't remember since when I am in this frame.
Ever since this body exists I am in it ;
Now the frame is doing strange activities.
Changes coming fast in the body mind complex at an astounding pace
All of a sudden I get perplexed
Looks  as  if the entire universe is shaking with an earthquake.
Don't want to peep outside.
Nor I want prominence.
Just want to come out of the world of this body.
Have no Temple outside this frame.
Can't tolerate anymore this body's futile   world .
It  is  intolerable  !
Want to go out even from its shadow.
Want to come near my own self.
Though I have no abode outside,
Still I would like to make a new abode or something like an abode.
I just want to come out.

Poet Pawan Tiwari
Cell – 7718080978
Translater – Mr. Shiv Kumar Sharma


अनुवादक परिचय - शिवकुमार शर्मा जी अंग्रेजी साहित्य से परास्नातक हैं. वर्तमान मुंबई में रहते हैं. वह कुछ दिनों तक गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी रहे. बाद में वे भारतीय राजस्व सेवा के लिए चुन लिए गये. दिल्ली से मुख्य आयकर आयुक्त के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद आध्यात्मिक साहित्य पर उनका अध्ययन चल रहा है. फिलहाल वे १९वीं एवं २०वीं शताब्दी की भारतीय संत परम्परा पर एक पुस्तक [ अंग्रेजी ] का संकलन एवं सम्पादन कर रहे हैं.




शनिवार, 20 अप्रैल 2019

अपने सबसे अधिक पराये


अपने सबसे अधिक  पराये
अपने  अपनों  से  घबराए
सबसे ज्यादा भय अपनों से
पहले  अपने   पैर  फिराए

दुनिया को दुश्मन माने हम
अपने घर में ही ज्यादा गम
टांग  खींचते   रिश्ते  वाले
बाहर   वाले   सबसे  कम

अपनी धुन में सदा ही रहना
सबकी  सुनना अपनी करना
खुद ही खुद को रच सकते हो
सच पे रहना गलत न करना

मायावी    आये   जायेंगे
बहुत कमाल दिखा जायेंगे
पर सब फकत मदारी होंगे
सच बिन राह नहीं  पायेंगे

साल में सावन भी आता है
आकर  के वसंत  जाता है
बुरा जो झेल रहा है उसका
अच्छा  आगे दिन आता है

पवन तिवारी
संवाद -  ७७१८०८०९७८




गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

प्रेम पाते हैं तो हम संवरते प्रिये


प्रेम  पाते  हैं तो  हम  संवरते प्रिये
रूठता प्रेम  तो  हम  बिखरते  प्रिये
होता पुलकित ये मन प्रेम आभास से
प्रेम करते  हो तो हम निखरते  प्रिये

सोचता  हूँ  कभी   वंदना  है  प्रिये
कभी  लगता  है कि प्रार्थना है प्रिये
नभ से विस्तृत पयोधि से गहरा लगे
प्रेम  लगता  है  प्रभु अर्चना है प्रिये

प्रेम से तुलसी  भी  राम  पाए प्रिये
ध्रुव थे बालक मगर धाम  पाए प्रिये
कलयुग में असम्भव भी संभव हुआ
मीरा के प्रेम  में श्याम  आये  प्रिये

प्रेम पावन  परम सीदा – सादा प्रिये
जीवन  आधार  ये है न बाधा प्रिये
प्रभु से पहले  तभी  प्रेमी पूजे गये
कृष्ण प्रभु हैं मगर पहले राधा प्रिये


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  



अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने क्या नहीं लिया
सहिष्णुता  प्रेम  देश  की एकता नहीं लिया

असहमति का अधिकार कहाँ तक पहुँच गया
माँ  बहन  बेटी  और  निजता  नहीं लिया

आलोचना के नाम पर क्या-क्या है हो रहा
गाली  चरित्र हनन का फायदा  नहीं लिया

विरोध के अधिकार का यह हश्र कर दिया
सच तो  बता दो हाथ में जूता नहीं लिया

अभिव्यक्ति की अति छूट से ज़ख्मी हुआ राष्ट्र
अपमान किससे – किससे  किसका  नहीं लिया

अब  क्या  कहूँ पवन तुम्हें हैरान मैं भी हूँ
सब धन की और दौड़े कोई वफा नहीं लिया


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


सफलता के दयार


सफलता के दयार जब बढ़ते हैं
जलने के दैयार भी बढ़ते हैं
जिनसे न रहा कभी कोई वास्ता
ऐसे भी कुछ लोग आप से कुढ़ते हैं

जब आप आगे-आगे चल रहे होते हैं
पीछे से कुछ यूं ही फब्तियां कस रहे होते हैं
जब आप गढ़ रहे होते हैं नये प्रतिमान
वे आप के प्रतिमान के बोझ से दब रहे होते हैं

जिस समय आप के प्रशंसक बढ़ रहे होते हैं
इनके आत्मविश्वास बेसाख्ता ढह रहे होते हैं
कई बार जिनके आप नाम भी नहीं सुने रहते
ऐसे भी कुछ आप के नाम से जल रहे होते हैं

जब आप उनके बहकावे में बहक जाते नहीं हैं
उनके भड़काने पर अनायास भड़क जाते नहीं हैं
जब आप उनके लाख उसकाने पर नहीं उसकते
तब आप उनके सीने पर अंजाने ही मूँग दलते हैं

आप जीत रहे होते हैं वे मायूस हो रहे होते हैं
आप का सिर्फ जिक्र आने पर बिदक रहे होते हैं
उखड़ जाते हैं महफ़िल में आप की तारीफ़ सुनकर
ऐसे लोग बस डाह से थोड़ा - थोड़ा मर रहे होते हैं

जब आप की फ़क्त चर्चा से असहज स्थित हो
उनकी रुकावट ही आप के विकास की परिस्थिति हो
तब अपनी प्रशंसा सुनकर जरा भी इतराइये मत
बस अपनी प्रतिभा से ही आप की सहज उपस्थिति हो

तब आप बाहर से दिखिए शांत और
हो जाइए अंदर से प्रसन्न  
पूरी शक्ति से लग जाइए  लक्ष्य की तरफ
क्योंकि तब निश्चित हो जाता है आप रचने वाले हैं इतिहास
तो बढ़िए नहीं दौड़िए, आप ऊँचे शिखर पर नाम लिखने वाले हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

पवन बाबू


समझ रहे हो अपनी घेराबंदी को पवन बाबू
वक़्त  आ गया है घोड़े पर चढ़ो पवन बाबू

ये जो भी जलते हैं जलने दो रोशनी होगी
इनके उजाले  में ही बढ़ते  रहो पवन बाबू


दुश्मनों  की  कुढ़न में भी मजा आता है
हाँ, तो  और  क्या  कहते हो पवन बाबू  

ये जो तुम्हारे दोस्त दुश्मन बन रहे हैं न
सफलता की  निशानी हैं  बढ़ो पवन बाबू 

नेपथ्य में गालियाँ  और सामने से स्तुति
अच्छे दिन आ गये मुस्करा दो पवन बाबू  

इतिहास बस तुम्हारी ही तरफ देख रहा है
बेधड़क  संघर्ष का झंडा उठाओ पवन बाबू  

तुम्हें गिरते देख मज़ा आया है दुश्मनों को
मर जायेंगे सब बस हँसकर उठो पवन बाबू

रास्ता रोके है हर अच्छे का जमाना हरदम
पवन हो, पवन  की तरह, बहो  पवन बाबू



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८